ताज महल पर मालिकाना हक को लेकर सुन्नी वक्फ बोर्ड और आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) के बीच विवाद चल रहा है। इस पर मालिकाना हक जताते हुए उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में दावा किया कि खुद मुगल बादशाह शाहजहां ने बोर्ड के पक्ष में इसका वक्फनामा किया था। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सबूत के तौर पर शाहजहां के दस्तखत वाले दस्तावेज एक हफ्ते में दिखाने को कहा।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि भारत में कौन यकीन करेगा कि ताज महल वक्फ बोर्ड का है? ऐसे मसलों पर सुप्रीम कोर्ट का वक्त बर्बाद नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि कोर्ट ने कहा कि मुगलकाल का अंत होने के साथ ही ताज महल समेत अन्य ऐतिहासिक इमारतें ब्रिटिशों को हस्तांतरित हो गई थी। आजादी के बाद से यह स्मारक सरकार के पास है और एएसअाई इसकी देखभाल कर रहा है।
बोर्ड की ओर से पेश एडवोकेट वीवी गिरी ने कहा कि बोर्ड के पक्ष में शाहजहां ने ही ताज महल का वक्फनामा तैयार करवाया था। इस पर बेंच ने तुरंत कहा कि आप हमें शाहजहां के दस्तखत वाले दस्तावेज दिखाएं। गिरी के आग्रह पर कोर्ट ने एक हफ्ते की मोहलत दे दी।
चीफ जस्टिस ने वक्फ बोर्ड के वकील से कुछ सवाल भी किए। जिसमें उन्होंने कहा कि शाहजहां ने वक्फनामे पर दस्तखत कैसे किए? वह तो जेल में बंद थे और वहीं से ताज महल का दीदार करते थे। उत्तराधिकार को लेकर हुए खूनी संघर्ष के बाद शाहजहां के बेटे औरंगजेब ने जुलाई 1658 में उन्हें आगरा फोर्ट में नजरबंद कर दिया था। फिर शाहजहां ने कब वक्फ ने नाम ताजमहल का मालिकाना हक किया था।
सुन्नी वक्फ बोर्ड ने जुलाई 2005 में आदेश जारी कर ताज महल को अपनी प्रॉपर्टी के तौर पर रजिस्टर करने को कहा था। इसके खिलाफ एएसआई ने साल 2010 में सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी, जिसके बाद कोर्ट ने बोर्ड के फैसले पर स्टे लगा दिया था। बता दें कि वक्फ का मतलब किसी मुस्लिम द्वारा धार्मिक, शैक्षणिक या चैरिटी के लिए जमीन का दान देना होता है।
सीजेआई ने कहा कि ताज और 17वीं शताब्दी की तमाम मुगल इमारतों को मुगल शासन खत्म होने के बाद ब्रिटिश शासन को सौंप दिया गया था। देश की आजादी के बाद यह भारत सरकार को मिलीं और तब से एएसआई इसकी देखरेख कर रहा है। एएसआई की ओर से पेश वकील एडीएन राव ने कहा कि कोई वक्फनामा नहीं है। साल 1858 की घोषणा के तहत, अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर से ली गई संपत्ति ब्रिटिश शासन के अधीन हो गई थी। इसके बाद 1948 के अधिनियम द्वारा इमारतों को भारत सरकार ने ले लिया था।
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