नई दिल्ली। दुनियाभर में कोरोना वायरस के इलाज, वैक्सीन, जगह-जगह पर मौजूदगी और उसके असर को लेकर अभी भी शोध जारी हैं। वैज्ञानिक और शोधकर्ता इसका इलाज ढूंढने के साथ ही अभी भी इस वायरस के हर पहलू को पूरी तरह से समझने की कोशिशों में जुटे हैं। इसी बीच दक्षिण कोरिया समेत कई देशों में सैकड़ों संक्रमित इलाज के बाद ठीक होकर घर लौटने के 70-70 दिन बाद तक दोबारा कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं. अप्रैल की शुरुआत में दक्षिण कोरिया में 160 ऐसे कोरोना पॉजिटिव पाए गए जो पहले ही इलाज से ठीक होकर घर लौट चुके थे. इसी तरह के मामले मकाऊ, ताइवान, वियतनाम और दूसरे देशों से भी सामने आए थे।
चीन में 70 दिन बाद दोबारा बीमार पड़े कई मरीज
चीन में कई ऐसे मामले सामने आए जिनमें संक्रमित मरीज इलाज के बाद अस्पताल से घर पहुंच गए. इसके 70 दिन बाद वे फिर कोरोना पॉजिटिव पाए गए. उस दौरान कोरिया सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के निदेशक जेऑन्ग उन-कीऑन्ग ने कहा था, ‘हो सकता है कि मरीजों के ठीक होने के बाद दोबारा संक्रमित होने के बजाय शरीर में मौजूद वायरस दोबारा सक्रिय हो रहे हों।’ उनकी इस थ्योरी को चीन में किए गए एक अध्ययन के निष्कर्षों में सही पाया गया है।
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन के शोधकर्ताओं ने पाया है कि इलाज के बाद ठीक होकर अस्पताल से छुट्टी पा चुके संक्रमितों के फेफड़ों में वायरस लंबे समय तक छुपा रह सकता है। इस समय इस्तेमाल हो रहे कोरोना टेस्ट से इन छुपे हुए वायरस का पता नहीं लगाया जा सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस समय इस्तेमाल हो रहे कोरोना टेस्ट से इन छुपे हुए वायरस का पता नहीं लगाया जा सकता है।
महिला के पोस्टमार्टम के आधार पर निकाले नतीजे
दक्षिण-पश्चिम चीन के चॉन्गकिंग में आर्मी मेडिकल यूनिवर्सिटी की रिसर्च टीम के प्रमुख डॉ. बियान शिउवू ने 78 साल की एक महिला के पोर्स्टमार्टम के आधार पर ये निष्कर्ष निकाला है। ये बुजुर्ग महिला कोरोना वायरस से उबर चुकी थी और तीन बार कोरोना टेस्ट में निगेटिव पाई गई थी।
इस बुजुर्ग महिला को 27 जनवरी को कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के तुरंत बाद अस्पताल में भर्ती करा दिया गया था। इसके बाद स्वाब टेस्ट में तीन बार निगेटिव पाए जाने पर 13 फरवरी को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। इसके अगले ही दिन यानी 14 फरवरी को दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गई. द वीक की रिपोर्ट के मुताबिक, शोधकर्ताओं को बुजुर्ग महिला के पोस्टमार्टम के दौरान लिवर, हार्ट, इंटेस्टाइन, स्किन या बोन मैरो में कोरोना वायरस के कोई सबूत नहीं मिले। वहीं, शोधकर्ताओं को बुजुर्ग महिला के फेफड़ों के टिश्यूज में कोरोना वायरस के कंप्लीट स्ट्रेंस मिले।
फेफड़ों के टिश्यूज में छुपे रहते हैं कोरोना स्ट्रेन्स
शोधकर्ताओं ने जब बुजुर्ग महिला के फेफड़ों के टिश्यूज की इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप से जांच की तो साफ हो गया कि उनमें क्राउन की आकार के खोल में कोरोना वायरस मौजूद था। शोधकर्ताओं ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि ये छुपे हुए कोरोना वायरस आम तौर पर संक्रमितों में नजर आने लक्षणों को नहीं उभारते हैं। ये चुपचाप फेफड़ों के टिश्यूज में पड़े रहते हैं और लंबे समय बाद फिर सक्रिय होकर ठीक हो चुके व्यक्ति को दोबारा बीमार कर देते हैं।
बुजुर्ग महिला के फेफड़ों के टिश्यूज की इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप से जांच की तो साफ हो गया कि उनमें क्राउन की आकार के खोल में कोरोना वायरस मौजूद था.
शोधकर्ताओं ने साफ तौर पर कहा है कि इस समय बड़े पैमाने पर कोरोना टेस्ट के लिए जुटाए जा रहे सैंपल्स में फेफड़ों से कोई सैंपल्स नहीं लिया जा रहा है. टीम ने जोर देकर कहा है कि हमें Sars-CoV-2 संक्रमण के हर पहलू को जल्द से जल्द समझना बहुत ही जरूरी है. साथ ही सुझाव दिया है कि अस्पताल से छुट्टी देने के पहले हर संक्रमित व्यक्ति के फेफड़ों की अच्छे से जांच की जाए. इसके अलावा उनके फेफड़ों में ट्यूब के जरिये वाशिंग लिक्विड डालकर साफ किया जा सकता है. हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि वाशिंग लिक्विड मरीज को और मुश्किल में डाल सकता है.
कई तरह से सैंपल्स लेकर किया जा रहा कोरोना टेस्ट
कोरोना टेस्ट के लिए अभी कई तह से सैंपल लिए जा रहे हैं. इनमें से स्वाब टेस्ट में लैब एक कॉटन स्वाब से गले या नाक के अंदर से सैंपल लेकर उसमें कोरोना वायरस की मौजूदगी का टेस्ट करता है. वहीं, नेजल एस्पिरेट में वायरस की जांच करने वाला लैब संदिग्ध की नाक में एक सॉल्यूशन डालने के बाद सैंपल कलेक्ट कर उसकी जांच करता है. इसके अलावा ट्रेशल एस्पिरेट में एक पतला ट्यूब संदिग्ध के फेफड़े में डालकर वहां से सैंपल लेकर उसकी जांच की जाती है. स्पुटम टेस्ट में फेफड़े में जमा मैटेरियल या नाक से स्वाब के जरिये निकाले जाने वाले सैंपल का टेस्ट होता है. वहीं, रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट में ब्लड लेकर संदिग्ध के शरीर में बनने वाली एंटीबॉडीज की जांच कर संक्रमण का पता लगाया जाता है. हालांकि, इस तरीके से जांच पर फिलहाल रोक लगा दी गई है.
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