नई दिल्ली- भारतीय जनता पार्टी दुनिया के सबसे बड़े राजनीतिक दल होने का दावा करती है। 17-18 करोड़ सदस्य होने का दम भरती है। उसके प्रवक्ताओं ने दिल्ली में कांग्रेस के शून्य प्रदर्शन पर मजाक उड़ाए हैं। लेकिन, आज हम आपके सामने विश्व की सबसे बड़ी पार्टी दशकों बाद दोबारा पहले भी भारी बहुमत के साथ केंद्र की सत्ता में वापस लौटने वाली पार्टी की एक अलग हकीकत पेश कर रहे हैं। आप जानकर हैरान रह जाएंगे के चार राज्यों में भाजपा का एक भी विधायक नहीं है, जिसमें दो तो काफी बड़े राज्य हैं। यही नहीं दो और महत्वपूर्ण राज्यों में भी उसके सिर्फ एक-एक ही विधायक हैं।
471 विधानसभा सीटों में भाजपा के शून्य विधायक
भारतीय जनता पार्टी पिछले 6 साल से देश की सत्ता पर पूर्ण बहुमत के साथ काबिज है। 2014 के मुकाबले 2019 में और भारी बहुमत के साथ सत्ता में लौटी है। पिछले लोकसभा चुनावों के बाद से पार्टी महाराष्ट्र और झारखंड में सत्ता गंवा चुकी है। 2018 के आखिर में वह मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान की सत्ता से भी हाथ धो बैठी थी। पार्टी दावा कर रही थी कि हाल में संपन्न हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में वह 70 में से 45 से ज्यादा सीटें जीतकर 23 वर्षों वाद सत्ता का वनवास दूर करेगी। लेकिन, पार्टी के सपने यहां भी चकनाचूर हुए हैं। पार्टी कांग्रेस के लगातार दो बार के शून्य प्रदर्शन पर तंज कसकर अपनी हार से मुंह छिपाने की कोशिश कर रही है। लेकिन, आप जानकर हैरान रह जाएंगे इस समय देश में चार विधानसभाओं में जहां विधानसभा की कुल 471 सीटें हैं, वहां आज की तारीख में बीजेपी का एक भी विधायक नहीं है।
भाजपा के ‘शून्य’ विधायकों वाले चार राज्य
2016 में हुए तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में पार्टी राज्य की 234 में से 188 सीटों पर चुनाव लड़ी, लेकिन उसे एक भी सीट नहीं मिला और वह महज 2.84% वोट ही जुटा सकी। पिछले साल लोकसभा के साथ ही आंध्र प्रदेश विधानसभा के लिए भी वोटिंग हुई थी। बीजेपी 175 में से 173 सीटों पर चुनाव लड़ी, लेकिन उसकी सफलत जीरो रही और उसे सिर्फ 0.84% वोट हासिल हुए। आंध्र प्रदेश के साथ ही सिक्किम विधानसभा की 32 सीटों के लिए भी चुनाव हुए। बीजेपी 12 सीटों पर लड़ी और उसे 1.62% वोट मिले, लेकिन उसका एक भी विधायक विधानसभा नहीं पहुंच सका। पुडुचेरी विधानसभा के लिए 2016 में वोट डाले गए थे। भाजपा वहां की सारी 30 सीटों पर चुनाव लड़ी, लेकिन एक भी सीट जीत नहीं पाई। पार्टी को पुडुचेरी में सिर्फ 2.41% मिले।
दो राज्यों की 259 सीटों में सिर्फ दो एमएलए
देश के दो राज्य और हैं, जहां बीजेपी पर नाम बड़े पर दर्शन छोटे वाला उदाहरण फिट बैठ सकता है। पार्टी ने दक्षिण के जिस राज्य में पिछले दो दशकों से सबसे ज्यादा जोर लगाया है, उसमें कर्नाटक के बाद केरल का ही स्थान है। इस बात में कोई दो राय नहीं कि राज्य में बीजेपी ने काफी संघर्ष के बाद एक जगह जरूर बनाई है। लेकिन, जब बारी 2016 में विधानसभा चुनाव की आई तब पार्टी ने राज्य की 140 में से 98 सीटों पर अपना उम्मीदवार उतारा, लेकिन उसका सिर्फ 1 विधायक ही विधानसभा तक पहुंच पाया। हालांकि, एलडीएफ और यूडीएफ गठबंधन के दबदबे की राजनीति वाले राज्य में पार्टी को 10.53% वोट जरूर मिले। 2018 में तेलंगाना विधानसभा का चुनाव निर्धारित समय से पहले ही करा लिया गया था। बीजेपी ने वहां भी 119 में से 117 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे, लेकिन सफलता सिर्फ एक उम्मीदवार को मिली। बीजेपी को तेलंगाना में 6.98% हासिल हुए थे।
दिल्ली में शिखर से शून्य तक पहुंची कांग्रेस
दिल्ली विधानसभा में पिछले दो चुनावों से कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत ही शर्मनाक बताया जा रहा है। शर्मनाक इसलिए कि 2013 तक कांग्रेस ने यहां लगातार तीन कार्यकाल तक सरकार चलाई थी। 2013 के विधानसभा चुनाव में उसके सिर्फ 8 विधायक विधानसभा पहुंचे थे। लेकिन, 2015 और 2020 के चुनावों में उसकी मिट्टी पलीद हो गई और वह दिल्ली की 70 सीटों में से एक पर भी जीत का परचम नहीं लहरा सकी। 2020 का चुनाव तो उसके लिए इसलिए भी बहुत बुरा साबित हुआ है क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी पर भारी पड़ने के बावजूद इस बार उसका वोट प्रतिशत घटकर महज 4.26% पर सिमट गया है। जबकि, 2015 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को 9.65% वोट मिले थे। बीजेपी कांग्रेस का इसलिए मजाक उड़ा रही है, क्योंकि उसका वोट प्रतिशत भी करीब 6 फीसदी बढ़ा है और सीटों में भी 5 का इजाफा होकर वह 8 तक जा पहुंचा है।
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