मथुरा। एक ओर देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा स्वच्छ भारत अभियान के तहत 2 अक्टूवर 2014 में जिस महत्वाकांक्षी योजना की लाल किले के प्राचीर से नींव रखी थी। उस योजना को जिस अवधि तक पूरा किया जाना था वह अवधि अब नजदीक आती जा रही है,ै लेकिन योजना अपने उददेश्य को प्राप्त कर पायेगी इसको लेकर कम से कम जनपद में तो संशय की स्थिति है। इसका कारण योजना को लागू करने वाले जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा इसके क्रियांन्वयन में बरती जाने वाली उदासीनता है।
बतादें कि स्वच्छ भारत अभियान की नींव 2 अक्टूवर 2014 में रखते हुए पीएम ने इस योजना को पूरा करने के लिए 2 अक्टूवर 2019 मोहन दास कर्मचंद महात्मा गॉधी जी की 150 वीं जयंती तक का लक्ष्य रखा था, लेकिन जिस स्वच्छता अभियान का आरम्भ जिस गति और जोश के साथ देश में हुआ था। उसकी गति शनै-शनै धीमी होती चली गयी और वर्तमान में जनपद में इस योजना की स्थिति बहुत की दयनीय है। आलम यह है कि अधिकारियों ने जिन स्थानों पर खुलें में शौच की समस्या देखी और लोगों के लिए उक्त स्थानों पर शौचालय बनवाये वहां लोग उन शौचालयों के सामने या आस-पास ही खुले में शौंच करते देखे जाते है। जिम्मेदार अधिकारियों ने शौचालय तो बनवा दिये तो मगर लोगों को इनका प्रयोग करने के लिये बाध्य नहीं कर पाये। जिसके चलते धीरे- धीरे जहां शौचालय खंडहर होते जा रहे हैं।अब हाल यह है कि लोग पुन: खुले में शौच की अपनी प्रवृति पर लौट आये है। जनपद के अधिकांश गांवों में अभी भी सुबह ओर शाम खुले में शौच करते महिला पुरूष देखे जा सकते हैं। नगर निगम क्षेत्र में तो और भी बुरा हाल है। रेलवे लाइनों के किनारे, यमुना किनारे, मिशन टीला, स्कूलों के ग्राउंड, हाईवे के किनारे खाली पड़ी जमीन पर अभी भी शौच लोग कर रहे हैं। इन स्थलों पर पूर्व में नगर निगम द्वारा शौच मुक्त क्षेत्र घोषित करने के होर्डिंग भी लगाये थे। उसके बाद भी इन स्थलों पर शौच करने वाले लोगों के विरूद्ध नगर निगम के अधिकारियों ने कोई कार्यवाही नहीं की। नगर पंचायत गोकुल, महावन, बल्देव, नंदगांव, चैमुहां का तो और भी बुरा हाल है।
पंचायत राज विभाग ने गांवों में शौचालय विहीन घरों में शौचालय तो बनाये लेकिन अधिकांश में कंडे, लकड़ी और अन्य कबाड़ का सामान भरा अधिकारियों के निरीक्षण में पहले भी पोल खुलती थी। शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों का कहना है कि उक्त अभियान के अंर्तगत चलने वाली इस महत्वाकांक्षी योजना के तहत पर्याप्त शौचालयों की सुविधा होने के वाबजूद अपने उददेश्य को प्राप्त करती नहीं दिख रही है।
इसे अधिकारियों की उदासीनता कहें या सिर्फ कागजों में ही शौचालय बने हैं। या फिर अधिकारी खुले में शौच करने वालों के विरूद्ध कार्यवाही करने से क्यों कतरा रहे हैं।
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