पेंशन को लेकर प्राइवेट सेक्टर में 15 हजार की बाध्यता खत्म

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) द्वारा केरल हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका लीव पिटीशन को खारिज कर दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से निजी क्षेत्र की कंपनियों से नौकरी से रिटायर होने वाले कर्मचारियों को पेंशन मिलने पक्का हो गया है।
केरल हाईकोर्ट ने सितंबर 2014 के फैसले में अधिकतम 15 हजार रुपए माह वेतन पर ही पेंशन की गणना का नियम समाप्त कर दिया था। आखिरी साल के औसत मासिक वेतन के मानक पर पेंशन तय करने का पुराना नियम बहाल कर दिया। ईपीएफओ ने केरल हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट का फैसला सुरक्षित रखा है। उसने कहा कि ईपीएफओ की अपील में कोई मेरिट नहीं है। केंद्र सरकार की 1995 की कर्मचारी पेंशन योजना के कर्मचारी के अंशदान के अलावा वेतन का 8.33% योगदान नियोक्ता को देना था। लेकिन, नियोक्ता के कंट्रीब्यूशन की सीमा अधिकतम 6500 रुपए सालाना के आधार पर 8.33% तय कर दी गई। मार्च 1996 में सरकार ने इस नियम में संशोधन किया और नियोक्ता और कर्मचारी को आपत्ति ना होने की स्थिति में पेंशन का योगदान पूरे वेतन का 8.33% कर दिया। 1 सितंबर 2014 को ईपीएफओ ने नियम में संशोधन करते हुए 8.33% के योगदान के लिए 15 हजार की सीमा तय कर दी। इसके साथ ही कहा गया कि पूरी सैलरी पर पेंशन चाहने वाले लोगों का औसत वेतन पिछले 5 साल के दौरान मिले वेतन के आधार पर तय कर दिया जाएगा। हालांकि, इस नियम के चलते कुछ कर्मचारियों को पेंशन में घाटा हो गया, क्योंकि पिछले नियम के तहत पेंशन एक साल की औसत वेतन पर तय की जाती थी।
केरल हाईकोर्ट ने इस संशोधन पर रोक लगा दी और पुराने नियम को बहाल कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2016 में ईपीएफओ को निर्देश दिया कि पूरी सैलरी के आधार पर कर्मचारियों को पेंशन दी जाए। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह रास्ता कर दिया है।
मौजूदा नियमों के तहत 2029 में रिटायरमेंट, 33 वर्ष की नौकरी और 50 हजार रुपए अंतिम मासिक वेतन पर अभी इस तरह पेंशन तय करने का नियम है :
2014 में ईपीएफओ ने अधिकतम 15 हजार रुपए/महीना पर पेंशन तय करने का नियम बनाया था। इससे पहले 1996 में 6500 रुपए/महीना पर पेंशन तय करने का नियम था। इसलिए 33 वर्ष की नौकरी को दो हिस्सों में बांटा जाता है और उसी पर गणना होती है।

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