मथुरा। ब्रज में ही क्या पूरे उत्तर भारत में कौन ऐसा होगा जिस ने इमरती का स्वाद ना चखा हो। देखने और बनाने में जलेबी जैसी लगने वाली यह मिठाई, स्वाद में जलेबी से बिलकुल अलग होती है। इसे जलेबी की तरह बनाना आसान नहीं है। जलेबी बनाने वाला हर कारीगर इसे नहीं बना सकता। कुछ खास हलवाई ही इस इमरती बनाने की कला में कुशल होते हैं। भले ही इसकी बनावट बहुत कुछ जलेबी की तरह से ही होती है। इसे बनाते समय सब से कठिन कार्य होता है गुच्छियाँ बनाना। जिस से इमरती की आकृति को सुन्दर कंगनाकार रूप मिलता है।
इसे बनाने में प्रयुक्त होने वाली सामग्री भी जलेबी से अलग होती है। इमरती उड़द की दाल से बनाई जाती है जिसे एक दिन पूर्व पानी में विधिवत् गला दिया जाता है, फिर पीसा जाता है और बनाते समय खमीर उठाने के लिए निरन्तर फेंटा जाता है। इमरती ज्यादातर देशी घी में सेंकी जाती है लेकिन कुछ हलवाई इसको सेंकने के लिए रिफाइंड का भी प्रयोग कर लेते हैं। देशी घी में बनी इमरती महंगी होती है। यह बाजार में 360 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकती है, जबकि रिफाइंड में बनी करीब इमरती 150 से 200 रुपये किलो मिल जाती है। इमरती सेंकने के दौरान ध्यान रखा जाता है कि यह पूरी तरह से सिक जाये। इमरती में स्वाद तभी आता है जब तक उसमें करारापन हो। वह तभी सम्भव होता है , जब उसकी अच्छे से सिकाई हुई हो। इसीलिए इसे कम आंच पर सेंका जाता है। फिर खांड़ की चासनी में डालकर घोली जाती है। ब्रज में यह इमरती पितृपक्ष की विशेष मिठाई मानी जाती है और पूरे वर्ष भर में केवल इन्हीं पन्द्रह दिनों में यह बनाई जाती है। हालाँकि शादी- विवाह समारोह एवं देवालयों की प्रसाद सामग्री में भी यह बनतीं हैं पर पितृपक्ष में तो इनका बनना निश्चित ही है। वह भी इसलिए श्राद्ध के दौरान बिना इमरती के मृत आत्मा की रोटी नहीं कढती है।
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