
यूनिक समय, नई दिल्ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भारत के सुप्रीम कोर्ट से एक महत्वपूर्ण संवैधानिक मुद्दे पर राय मांगी है। उन्होंने राष्ट्रपति और राज्यपाल की शक्तियों से जुड़े कुल 14 सवालों को लेकर एक प्रेसिडेंशियल रेफरेंस दायर किया है। यह कदम हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा तमिलनाडु के राज्यपाल से जुड़े एक मामले में दिए गए फैसले के बाद उठाया गया है, जिसमें कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल किसी विधेयक को अनिश्चितकाल तक लंबित नहीं रख सकते।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा पूछे गए सवाल मुख्य रूप से संविधान के अनुच्छेद 200, 201, 361, 143, 142, 145(3) और 131 से संबंधित हैं। इन सवालों में उन्होंने यह जानना चाहा है कि किसी राज्यपाल के पास जब कोई विधेयक आता है तो उनके पास क्या संवैधानिक विकल्प होते हैं और क्या उन्हें मंत्रिपरिषद की सलाह माननी अनिवार्य है।
इस संवैधानिक विमर्श की पृष्ठभूमि तमिलनाडु में राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच विधेयकों को लेकर उत्पन्न विवाद है, जहां राज्यपाल द्वारा कई विधेयकों को रोक दिए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को यह स्पष्ट किया था कि राज्यपाल के पास ‘वीटो पावर’ नहीं है और यदि कोई विधेयक राष्ट्रपति को भेजा गया है तो उस पर तीन महीने के भीतर निर्णय लिया जाना चाहिए।
राष्ट्रपति द्वारा सुप्रीम कोर्ट से पूछे गए प्रमुख सवाल
- जब राज्यपाल के सामने कोई बिल आता है, तो उनके पास कौन-कौन से संवैधानिक विकल्प होते हैं।
- क्या राज्यपाल फैसला लेते समय मंत्रिपरिषद की सलाह से बंधे हैं।
- क्या राज्यपाल के फैसले को अदालत में चुनौती दी जा सकती है।
- क्या आर्टिकल 361 राज्यपाल के फैसलों पर न्यायिक समीक्षा को पूरी तरह रोक सकता है।
- अगर संविधान में राज्यपाल के लिए कोई समयसीमा तय नहीं है, तो क्या अदालत कोई समयसीमा तय कर सकती है।
- क्या राष्ट्रपति के फैसले को भी अदालत में चुनौती दी जा सकती है।
- क्या राष्ट्रपति के फैसलों पर भी अदालत समयसीमा तय कर सकती है।
- क्या राष्ट्रपति को सुप्रीम कोर्ट से राय लेना अनिवार्य है।
- क्या राष्ट्रपति और राज्यपाल के फैसलों पर कानून लागू होने से पहले ही अदालत सुनवाई कर सकती है।
- क्या सुप्रीम कोर्ट आर्टिकल 142 का इस्तेमाल करके राष्ट्रपति या राज्यपाल के फैसलों को बदल सकता है।
- क्या राज्य विधानसभा द्वारा पारित कानून, राज्यपाल की स्वीकृति के बिना लागू होता है।
- क्या संविधान की व्याख्या से जुड़े मामलों को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच को भेजना अनिवार्य है।
- क्या सुप्रीम कोर्ट ऐसे निर्देश/आदेश दे सकता है जो संविधान या वर्तमान कानूनों मेल न खाता हो।
- क्या केंद्र और राज्य सरकार के बीच विवाद सिर्फ सुप्रीम कोर्ट ही सुलझा सकता है।
राष्ट्रपति द्वारा भेजा गया यह प्रेसिडेंशियल रेफरेंस संवैधानिक व्यवस्था की व्याख्या और स्पष्टता के लिहाज से बेहद अहम माना जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट की राय से यह तय होगा कि कार्यपालिका और राज्यपाल की भूमिका संविधान के ढांचे में कैसे परिभाषित की जाए।
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