शीला दीक्षित: इंदिरा—सोनिया के बाद कांग्रेस की सबसे मजबूत महिला नेता, राजनीतिक सफर

नई दिल्ली। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता शीला दीक्षित का शनिवार को निधन हो गया. शनिवार की सुबह उन्हें ओखला स्तिथ एस्कॉर्ट अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया. वो लंबे समय से बीमार थीं. शनिवार दोपहर 3.30 बजे 81 साल की शीला दीक्षित ने एस्कॉर्ट अस्पताल में अंतिम सांस ली. शीला​ दीक्षित ने 1998 में पहली बार दिल्ली से विधानसभा का चुनाव लड़ा और दिल्ली की छठवीं मुख्यमंत्री बनी थीं.

शीला दीक्षित का नाम कांग्रेस के उन कद्दावर नेताओं में सबसे ऊपर है, जिन्होंने लंबे समय तक कांग्रेस की सरकार राज्य में मजबूती से बनाए रखा. 15 साल तक दिल्ली की राजनीति में शीला दीक्षित ने एकक्षत्र राज किया. बीजेपी के तमाम कोशिशों के बावजूद वो शीला दीक्षित के चक्रव्यूह को भेद नहीं सके.

शीला दीक्षित का राजनीतिक सफर

1. पंजाब के कपूरथला में जन्मी शीला दीक्षित की शादी उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता उमाशंकर दीक्षित के बेटे विनोद दीक्षित से हुई. पंजाबी से ब्राह्मण बनीं शीला दीक्षित ने ससुर के राजनीतिक विरासत को बखूबी संभाला.

2. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में पहली बार शीला दीक्षित कन्नौज से लड़कर संसद तक पहुंची. गांधी परिवार की करीबी होने के नाते उन्हें राजीव गांधी के सरकार में संसदीय कार्य राज्यमंत्री और पीएमओ में मंत्री बनने का मौका मिला.

3. 1998 में सोनिया गांधी के राजनीति में आने बाद शीला दीक्षित को भी दुबारा राजनीति में सक्रिय होने का मौका मिला. सोनिया गांधी ने उन्हें दिल्ली की बांगडोर सौंपी. जिसके बाद शीला दीक्षित ने पलट कर नहीं देखा. केंद्र में चाहे बीजेपी की सरकार हो या कांग्रेस की लेकिन दिल्ली में शीला दीक्षित ही सत्ता में रहीं.

4. शीला दीक्षित ने अपने कार्यकाल में दिल्ली को एक नई पहचान दी. फ्लाईओवर से लेकर मेट्रो, दिल्ली की हरियाली, स्वास्थ्य और शिक्षा ऐसी कई पहल शीला दीक्षित ने की जिसको आज भी वो गर्व से गिनाती है. लेकिन शीला दीक्षित के दामन पर कॉमनवेल्थ गेम में हुए भ्रष्टाचार के आरोपों का दाग भी लगा, लेकिन ये शीला दीक्षित का व्यक्तित्व ही था जो वो हर आरोपों के सामने बहादुरी से खड़ी रही. वह 2014 में केरल की राज्यपाल भी रहीं.
5. एक दौर ऐसा भी आया जब अपने तमाम उपलब्धियों के बावजूद शीला दीक्षित अन्ना आंदोलन और केजरीवाल के भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना नहीं कर पाई और सत्ता गंवा बैठी.

यूपीए-2 के दौरान हुए अन्ना आंदोलन और कांग्रेस पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच शीला दीक्षित भी अपने किले को बचा न सकी. दिल्ली के कांग्रेस का सफाया हो गया, लेकिन पांच साल बीतते-बीतते दिल्ली की जनता के साथ-साथ कांग्रेस नेतृत्व को भी इस बात का अहसास हो गया कि उनके पास शीला दीक्षित से बड़ा कोई तुरुप का इक्का नहीं है. यही वजह है कि मोदी और केजरीवाल की दोहरी चुनौती से सामना करने के लिए 78 साल की शीला दीक्षित को फिर से मैदान में उतारा गया था.

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