आज है राधाष्टमी: खुश हो गयी तो मालामाल कर देगी राधारानी, ऐसे करें पूजा अर्चना!

नई दिल्ली। भाद्र मास के शुक्‍ल पक्ष की अष्‍टमी को राधा अष्‍टमी मनाई जाती है। खासतौर से मथुरा, वृंदावन और बरसाना में तो इस पर्व को कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी की ही तरह धूमधाम से मनाया जाता है। इसी दिन राधा रानी का जन्‍म हुआ था। राधा के बिना श्रीकृष्‍ण अधूरे हैं। कृष्‍ण के नाम से पहले राधा का नाम लिया जाता है। वेद-पुराणों में राधा को ‘कृष्ण वल्लभा’ कहकर उनका गुणगान किया गया है। मान्‍यता है कि राधा जी के मंत्र जाप से ही मोक्ष की प्राप्‍ति हो जाती है।

राधा को भगवान श्रीकृष्ण के प्राणों की अधिष्ठात्री देवी माना गया है। हालांकि अष्टमी तिथि पांच सितंबर से शुरु हो चुकी है लेकिन उदया तिथि के अनुसार आज 6 सितंबर को शाम 8 बजकर 43 मिनट तक अष्टमी तिथि रहेगी। उसके बाद नवमी तिथि शुरु हो जायेगी। इसलिए राधा अष्टमी का पर्व आज ही मनाया जायेगा।

राधा अष्टमी का पर्व मनाने के लिए स्‍नान करने के बाद स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करें। पूजा घर के मंडप के नीचे बीचों-बीच कलश स्‍थापित करें। अब राधा जी की मूर्ति को पंचामृत (दूध, दही, शहद, तुलसी दल और घी) से स्‍नान कराने के बाद सुंदर वस्‍त्र और आभूषण अर्पित करें। राधा जी की मूर्ति को कलश पर रखे पात्र पर विराजमान करें। इसके बाद विधिवत्त धूप-दीप से आरती उतारें। राधा जी को ऋतु फल, मिठाई और भोग में बनाया प्रसाद अर्पित करें। पूजा के बाद दिन भर उपवास का विधान है। शनिवार की सुबह यथाशक्ति सुहागिन महिलाओं और ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दक्षिणा दे कर उपवास-व्रत का पारायण करें।

राधा-कृष्‍ण के भक्‍तों के लिए राधा अष्‍टमी का विशेष महत्‍व है। मान्‍यता है कि इस व्रत को करने से धन की कमी नहीं होती और घर में सौभाग्‍य आता है। कहते हैं अगर श्रीकृष्‍ण को प्रसन्‍न करना है तो राधा की आराधना जरूरी है। यही वजह है कि अपने आराध्‍य कृष्‍ण को मनाने के लिए भक्‍त पहले राधा रानी को प्रसन्‍न करते हैं। मान्‍यता है कि राधा अष्‍टमी का व्रत करने से सभी पाप नष्‍ट हो जाते हैं।

राधा अष्‍टमी का त्‍योहार पूरे जोश और उमंग के साथ मनाया जाता है। ब्रज और बरसाना में तो राधा अष्‍टमी भी श्रीकृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी की ही तरह धूमधाम से मनाई जाती है। इस दिन लोग बरसाना की ऊंची पहाड़ी पर स्थित गहवर वन की परिक्रमा करते हैं। वृन्दावन के राधा बल्लभ मंदिर में राधा अष्‍टमी की छटा देखते ही बनती है। मंदिर में राधा रानी के जन्‍म के बाद उन्‍हें भोग लगाया जाता है। फिर बधाई गायन होता है और सामुहिक आरती के साथ इसका समापन होता है। इसके अलावा दूसरे मंदिरों में भी राधा के जन्‍म की खुशियां मनाई जाती हैं और विशेष आरती का आयोजन किया जाता है। इस दिन लोग व्रत भी रखते हैं। मान्‍यता है कि इस व्रत के प्रताप से श्रीकृष्‍ण प्रसन्‍न होते हैं और भक्‍तों की सभी मनोकामानाएं पूर्ण करते हैं।

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