आरटीपीसीआर से आसान होगा ये रैपिड टेस्ट, मधुमक्खियां करेंगी कोविड जांच- शोध

नई दिल्ली। पिछले एक महीने से कोविड-19 की दूसरी लहर के कारण भारत मे संक्रमण बहुत ही तेजी से फैला है. इतनी तेजी से मामले बढ़ने से कोविड की जांच में बहुत ज्यादा दबाव पड़ा जिससे आरटीपीसीआर टेस्ट की रिपोर्ट के लिए लोगों को 5-7 दिन तक का इंतजार करना पड़ा। फिलहाल कोविड-19 की प्रमाणिक जांच के लिए इसी टेस्ट को अधीकृत किया गया है। लेकिन अब वैज्ञानिकों ने एक नया टेस्ट निकाला है जिसमें मधुमक्खियों उपयोग होगा।

बहुत अनोखा टेस्ट
यह अपने आप में बहुत ही अनोखा टेस्ट है है वॉशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिकनडच शोधकर्ताओं ने बताया है कि उन्होंने मधुमक्खियों को ऐसे प्रशिक्षित किया है जिससे वे वायरस की खास गंध के सामने आने पर अपनी जीभ बाहर निकाल लेंगी। यह एक तरह के रैपिड टेस्ट की तरह काम करेगा. परंपरागत लैब टेस्ट से यह बहुत ही हटकर है।

कम आय वाले देशों के लिए बहुत मुफीद
वैज्ञानिकों का कहनै कि मधुमक्खियों को कोरोना वायरस की पहचानने के लिए प्रशिक्षित करने कम आय वाले देशों को फायदा होगा जिनके पास पॉलीमराइज चेन रिएक्शन टेस्ट के लिए जरूरी सामग्री और तकनीक उपलब्ध नहीं हैं। वैगनिनजेन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और इस शोध की अगुआई करने वाले विम वैनडर पोएल का कहना है कि सभी के पास, खास तौर पर कम आय वाले देशों की लैबोरेटरी में वह उपलब्ध नहीं है, जबकि मधुमक्खियां हर जगह उपलब्ध है और इनके लिए जरूरी उपकरण भी जटिल नहीं है।

मशहूर टीका विशेषज्ञ गगनदी कांग की भविष्यवाणी, मई मध्य से आखिर तक कोरोना के मामले घटने लगेंगेमशहूर टीका विशेषज्ञ गगनदी कांग की भविष्यवाणी, मई मध्य से आखिर तक कोरोना के मामले घटने लगेंगे।

कैसे किया प्रशिक्षित
वैज्ञानिकों ने करीब 150 मधुमक्खियो को पॉवलोवियन कंडीशनिंग पद्धति से प्रशिक्षित किया जिसमें उन्हें हर बार कोरोना वायरस की गंध का सामना करने पर शक्कर का पानी दिया, लेकिन जबकि बिना वायरस के नमूने के साथ उन्हें कुछ नहीं दिया गया। इससे उन्हें हर बार कोरोना वायरस की गंध मिलने पर जीभ निकालने की आदत हो गई. और फिर गंध मिलने के बाद शक्कर का पानी ना मिलने पर भी वे जीभ निकालने लगीं।

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95 प्रतिशत कारगरता की संभावना
शोधकर्ताओं का कहना है कि कुछ ही घंटों में मधुमक्खियां वायरस को कुछ ही सेकेंड्स में पहचानने के लिए प्रशिक्षित हो गईं। पोएल का कहना है कि वैज्ञानिकों को विश्वास है कि वे इस टेस्ट में 95 प्रतिशत कारगरता की दर हासिल कर सकते हैं अगर वे कुछ कीड़ों का नमूना सूंघने के लिए उपयोग करें. इस अध्ययन के नतीजे अभी पियर रीव्यू के लिए नहीं दिए गए हैं और ना ही अभी प्रकाशित हुए हैं।

कैसे आया ये विचार
शोधकर्ता पहले यह दिखाना चाहते थे कि मधुमक्खियों को प्रशिक्षित किया जाता है. इसमें सफल होने के बाद वे इस पद्धति की संवेदनशीलता की गणना कर रहे हैं। इस पद्धति का विचार इंसेक्टसेंस नाम के डच कीट तकनीक स्टार्टअप से आया जिसमें मधुमक्खियों को खनिज संपन्न अयस्क और लैंड माइन को पता लगाने के लिए उपयोग में लाया जाता था. स्टाफ को लगा कि इसका उपयोग कोरोना वायरस की पहचान के लिए भी किया जा सकता है जिसके बात उन्होंने यूनिवर्सिटी शोधकर्ताओं से संपर्क किया।

वैज्ञानिकों ने मिंक और इंसान दोनों के ही नमूनों को मधुमक्खों पर आजमाया और दोनों में ही समान नतीजे मिले। इंसेक्टसेंस का कहना है कि वह ऐसी मशीन पर काम कर रही है जो मधुमक्खयों को एक साथ प्रशिक्षण दे सकेगी। वह साथ ही ऐसी बायोचिप भी बना रही है जो मधुमक्खियों कि कोशिकाओं से जीन्स का उपयोग वायरस की पहचान करने में करेगी. इससे जीवों पर निर्भरता भी खत्म हो सकेगी।

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