मथुरा। श्री रामलीला के तत्वावधान में श्रीकृष्ण जन्मस्थान लीला मंच पर शिव-पार्वती विवाह का मनोहारी व हृदयस्पर्शी मंचन हुआ, इस अवसर पर श्रीकृष्ण जन्मस्थान के प्रांगण में शिव बारात निकाली गयी।
देवर्षि नारद माता पार्वती के पिता हिमाचल के यहॉं पहुंचते हैं हिमाचल देवर्षि से पुत्री पार्वती की हस्तरेखा दिखाकर भविश्य बताने की प्रार्थना की । नारदजी ने सभी प्रकार से गुणवान, यशस्वी एवं अखण्ड सौभाग्यवती बताते हुये कहा कि आपकी पुत्री को सभी सुख है, केवल एक कमी बताई कि इसका पति अघोरी व अस्त-व्यस्त वस्त्र धारण करने वाला होगा । हिमाचल ने अपनी पुत्री के दोष को शांत करने का उपाय पूंछा तो नारदजी ने कहा कि इसका विवाह भूतभावन भगवान शिव से होगा । आप अपनी पुत्री से तप करायें इससे सभी दोष शांत होंगे ।
देवर्षि नारद के जाने के पश्चात माता मैना ने ऐेसे वर से विवाह करने को मना किया तो हिमाचल राजा ने भगवान का स्मरण करने की सलाह दी । पार्वतीजी ने अपनी माता को बताया कि उन्होंने रात्रि में एक स्वप्न देखा कि एक बहुत सुन्दर श्रेष्ठ ब्राह्मण ने कहा कि नारद जी ने जो कुछ कहा है उसे सत्य मानकर तपस्या कीजिये । जिससे मेरे समस्त दुख-दोशों का नाश होगा । माता पिता की आज्ञा से उन्होंने कठिन तप किया । ब्रह्मा जी ने प्रकट होकर शंकरजी को उनके वर के रूप में प्राप्त होने का वर प्रदान किया ।
शंकर भगवान समाधि में लीन थे तब भगवान नारायण ने प्रकट होकर उनसे पार्वती से विवाह करने की प्रार्थना की । उनके सुझाव पर भगवान शंकर ने सप्तऋषियों को पार्वतीजी की मनोइच्छा जानने को भेजा । जहॉं ऋषियों ने देवी पार्वती के सम्मुख श्री शंकर जी की अनेक बुराईयां एवं अवगुणों की व्याख्या की तो पार्वतीजी ने हॅस कर कहा कि भगवान शंकर ही मेरे स्वामी हैं, मेरा जीवन उनके लिए अर्पित है अतः करोड़ों जन्मो शंकरजी की सेवा में रहूं । ऋषि शंकरजी से पार्वती की इच्छा प्रकट करते हैं ।
तारकासुर के भय से सभी देवता कामदेव को भगवान शंकर की समाधि भंग करने को भेजते हैं । यहॉं शिव कामदेव को अपने तीसरे नेत्र से भस्म कर देते हैं ।
विश्णु, ब्रह्मा, इन्द्र आदि देवताओं के अनुरोध पर शंकरजी दूल्हा का वेश धारण कर दिगपाल, भूत, प्रेत, पिषाच, व देवताओं के साथ बारात लेकर राजा हिमाचल के यहॉं पहुंचते हैं ।श्री कृष्ण जन्मस्थान प्रांगण में बैण्ड बाजों के मध्य शिव बारात निकाली गई । माता मैना वर व बरातियों का रूप देख कर भयभीत हो जाती हैं किन्तु पुत्री पार्वती द्वारा धैर्य धारण कराने पर वर का स्वागत करती हैं । उसके बाद शिवजी का पार्वती के साथ पाणिग्रहण संस्कार सम्पन्न होता है ।
प्रसाद की व्यवस्था दिनेश चन्द बंसल कसेरे द्वारा की गई । लीला में गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी, गौरषरण सर्राफ, रविकान्त गर्ग, सभापति जयन्ती प्रसाद अग्रवाल, उपसभापति जुगलकिशोर अग्रवाल, प्रधानमन्त्री मूलचन्द गर्ग, उपप्रधानमन्त्री प्रदीप कुमार सर्राफ, विजय कुमार सर्राफ, कोषाध्यक्ष शैलेश अग्रवाल सर्राफ, बनवारी लाल गर्ग, चरत लाल सर्राफ, अजय सर्राफ, हेमन्त अग्रवाल, हिमांशु सूतिया, विश्णु षर्मा, गोविन्द सजावट, रमेष किस्सो, कुलदीप अग्रवाल, हरिओम अग्रवाल, शिवकुमार अग्रवाल, अमन बिजली आदि प्रमुख थे।
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