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बारह वनों में बेलवन का विशेष माहात्म्य है। यह मां लक्ष्मी का धाम है। कमला ने ब्रज रज की प्राप्ति के लिए बेलवन में तप किया था। वैकुंड को त्यागकर वह यहां वास करती हैं। ऐसी भी मान्यता है कि श्रीकृष्ण के महारास के दर्शन को लक्ष्मी मैया अब भी बेलवन में तप कर रही हैं। यहां उनके चतुर्भुज स्वरूप में दर्शन हैं। बेलवन कान्हा का गोचारण स्थल भी है। मांडे-वृंदावन मार्ग पर दस किमी आगे दाईं ओर का मोड़ जहांगीरपुर गांव (देलन को जाता है। आरया के इस धाम से सरकारी नुमाइंदों | क कोई सरोकार नहीं है। लक्ष्मी जी की तपोस्थली तक जाने वाले मार्ग की दयनीय दशा है। इस प्राचीन वन में नाम मात्र के बेल वृक्ष बचे हैं। इन काटकर बस्ती बस गई है।
बेलवन धाम में लक्ष्मी मैया के सँग गोपाल जी भी विराज रहे हैं। मंदिर के सेवक लाखन के अनुसार ‘‘बड़ी दीपावली पर दूर दराज के भक्त यहां आकर दीपदान करते हैं। पूस मास के चारों गुरुवार को श्रद्धालुओं का मेला लगता है और लक्ष्मी जी की विशेष पूजा अर्चना होती है। प्राचीन मंदिर के जीर्ण-शीर्ण होने पर नए मंदिर का निर्माण कराकर लक्ष्मी जी को यहां पधराया है। मंदिर परिसर में लक्ष्मी जी के चरण चिन्ह और रास मंडल है। पीछे महाप्रभु बल्लभाचार्य की बैठक है। इसके आसपास कुछ बेल वृक्ष नजर आते हैं।
वेलवन में गोपेश्वर महादेव नामक एक प्राचीन स्थान का भी है। मंदिर के सेवक रामकृष्णदास दावा करते हैं कि भोले बाबा इसी स्थान से गोपी बनकर रास में गए थे। वृंदावन स्थित गोपेश्वर महादेव के मंदिर से जुड़ी लीला को वे आंति बताते हैं। उनका कहना है कि “भोले बाबा ने वहीं पर गोपी रूप धारण किया था। प्रचार प्रसार के अभाव में यह स्थान प्रकाश में नहीं आ पाया। यह बहुत सिद्ध स्थान है।”
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