पटना। राजद का रुख महागठबंधन के घटक दलों को अखरने लगा है। उसके 21 दिसम्बर के बंद पर अड़े रहने पर अंतत: अन्य दलों ने वामदलों और राजद दोनों के बंद को समर्थन देने पर सहमत तो हो गए, लेकिन राजद से नाराजगी भी सामने आ ही गई। बुधवार को पत्रकारों के सवाल पर रालोसपा नेता उपेन्द्र कुशवाहा ने साफ कहा कि वामदल और राजद दोनों के बंद को समर्थन देने के लिए प्रेसवार्ता का प्रस्ताव राजद की ओर से ही था। लेकिन जब प्रेसवार्ता बुला ली गई तो उनके प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने इसके औचित्य पर ही सवाल खड़ा कर दिया।
वीआईपी कार्यालय में प्रेस कान्फ्रेंस के शुरू में ही उपेन्द्र के इस बयान के निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। यह भी गौरतलब है कि राजद का कोई नेता महागठबंधन के इस प्रेसवार्ता में नहीं था। लिहाजा पत्रकारों की ओर से इस पर सवाल भी किया गया। लेकिन कुशवाहा ने सवाल से पहले ही स्थिति साफ कर दी। कमोबेश अन्य दलों के नेताओं ने भी उनका साथ दिया। ऐसे में लगता है कि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ बंद को समर्थन देने की बात अलग है, लेकिन नाराजगी तो है।
गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव में वामदलों से सीट को लेकर राजद की खटास सामने आ चुकी है। अब वामदलों और कांग्रेस से रालोसपा की बढ़ रही नजदीकी एक नए रिश्ते का संकेत दे रहा है। बुधवार को जुटे महागठबंधन के नेता प्रेस कांफ्रेंस के बाद साथ खाना भी खाया। वहीं, कुशवाहा हर कार्यकम में राहुल गांधी के स्टैंड का जितना समर्थन करते रहे हैं कांग्रेस नेता भी कई बार उतना मुखर नहीं होते। हम प्रमुख जीतन राम मांझी अकेले लड़ने की भी चर्चा पहले कर चुके हैं।
जानकारों का मानना है कि अब वीआईपी नेता मुकेश सहनी का झुकाव भी इसी ओर दिखने लगा है। ऐसा हुआ तो विपक्ष की राजनीति में राजद अकेला पड़ सकता है। चर्चा यह भी है कि महागठबंधन के दलों की एकजुटता राजद पर अधिक से अधिक सीट हासिल करने के दबाव की रणनीति भी हो सकती है।
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