सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष के ये तीन दावे किए खारिज, नमाज पढ़ने के दावे को नहीं माना

नई दिल्ली. अयोध्या में राम जन्मभूमि -बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. वहीं इस दौरान कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की तमाम दलीलों का जिक्र करते हुए एएसआई (ASI) की रिपोर्ट्स को अहम माना है. साथ ही कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष के उन तीन अहम दावों को भी खारिज कर दिया जिन्हें फैसले से पहले निर्णायक माना जा रहा था.

SC ने नहीं माना कि मस्जिद खाली जमीन पर बनी थी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम एएसआई की रिपोर्ट को नज़रअंदाज नहीं कर सकते. खुदाई में निकले सबूतों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. वहीं कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनी थी. कोर्ट ने कहा कि मस्जिद के नीचे विशाल संरचना थी. कोर्ट ने कहा कि जो कलाकृतियां मिली थीं, वह इस्लामिक नहीं थीं. विवादित ढांचे में पुरानी संरचना की चीजें इस्तेमाल की गईं. हालांकि कोर्ट ने कहा कि नीचे संरचना मिलने से भी हिंदुओं के दावे को माना नहीं माना जा सकता. कोर्ट ने ASI की रिपोर्ट पर भरोसा जताते हुए कहा कि इस पर शक नहीं किया जा सकता.

नमाज पढ़ने के दावे को नहीं माना

मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में दावा किया था कि वहां विवादित स्थल पर 1934 से 1949 तक नमाज पढ़ी जाती थी. हालांकि, कोर्ट ने उसके इस दावे को नहीं माना. दूसरी तरफ हिंदू पक्ष यह साबित करने में कामयाब रहा कि बाहरी चबूतरे पर लगातार हिंदुओं का कब्जा था और वे वहां पूजा किया करते थे. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने कहा था कि विवाद भगवान के जन्मस्थान को लेकर है कि आखिर जन्मस्थान कहां है.

मस्जिद के बनने की तारीख को कोर्ट ने नहीं दिया महत्व
शिया बनाम सुन्नी केस में एक मत से फैसला आया है. शिया वक्फ बोर्ड की अपील खारिज कर दी गई है. उन्होंने कहा कि मस्जिद कब बनी, इससे फर्क नहीं पड़ता. 22-23 दिसंबर 1949 को मूर्ति रखी गई. एक व्यक्ति की आस्था दूसरे का अधिकार न छीने. नमाज पढ़ने की जगह को हम मस्जिद मानने से मना नहीं कर सकते. जज ने कहा कि जगह सरकारी जमीन है.

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