नई दिल्ली। श्रीनगर के बीचोबीच गडा कोचा में बुधवार को काफी चहल-पहल थी। बारिश हो रही थी फिर भी लोग दो मंजिल के एक शॉपिंग मॉल में जा रहे थे। वहीं रोशन लाल मावा की आंखों में आंसू थे। मावा कश्मीरी पंडित हैं, उम्र 70 साल के आप-पास हो चली है। तीस साल बाद वो दिल्ली में अपना चलता हुआ व्यापार और करोड़ों का घर छोड़कर कश्मीर लौटे हैं।
तीस साल पहले श्रीनगर के ज़ैना कदाल में मावा एक जाने-माने व्यापारी थे। 1990 की बात है जब कथित रूप से उन पर आतंकवादियों ने हमला कर दिया था, जिसमें वह काफी घायल हो गए थे। आतंकवादियों ने उनके ऊपर कई गोलियां बरसाईं, जिसमें तीन उनके पेट में और एक पैर में लगी। गोली लगने की वजह से वह काफी घायल हो गए। मावा ने बताया कि हमले के कई दिनों बाद उनके परिवार ने सामान पैक किया और जम्मू में कश्मीरी पंडितों के लिए बने कैंप में जा के रहने लगे. हमले के वक्त मावा की पत्नी, दो बेटे और एक बेटी घर पर उनके साथ थे। उनका एक बेटा घाटी के बाहर रह रहा था। बाद में बेटे के समझाने पर वे दिल्ली के खड़ी बावली आकर मसालों का व्यापार करने लगे. मावा बताते हैं, ‘शुरुआत में मुझे काफी मेहनत करनी पड़ी। हालांकि, आसपास के व्यापारियों ने कभी भी मेरे साथ व्यापार करने से मना नहीं किया. मैं आज दिल्ली का एक सफल व्यापारी हूं. मेरा घर 20 करोड़ रुपये से ज्यादा का है. लेकिन में कश्मीर को कभी भूल नहीं सका.’
अब तीस साल बाद उन्होंने दिल्ली छोड़कर कश्मीर बसने का फैसला किया है. उन्होंने कहा कि कश्मीर के लिए मैं कुछ भी छोड़ सकता हूं. मावा की पुरानी दुकान बिल्कुल टूट-फूट चुकी थी लेकिन उन्होंने अब उसे फिर से खड़ा किया है. वे बताते हैं कि पिछले तीस सालो में वे कई बार कश्मीर गए और कुछ दिन रुके भी. उनका कहना है कि हालांकि, पिछले पांच सालों में कश्मीर में हालत बिगड़ी है लेकिन फिर भी कश्मीर मुझे रहने लायक सबसे सुरक्षित जगह लगती है. मावा ने कहा कि कश्मीर और कश्मीरियों की बाहर बहुत खराब छवि बनाई जा रही है. यहां कश्मीरी पंडितों के लिए अलग से कॉलोनी बनाने की कोई ज़रूरत नहीं है. जो लोग ऐसा करने की मांग कर रहे हैं वे मामले का राजनीतिकरण करना चाहते हैं.
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