इस संकटमोचक को बनाया जा सकता है BJP का राष्ट्रीय अध्यक्ष!

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पिछली सरकार में स्वास्‍थ्य मंत्री रहे जेपी नड्डा समेत कुल 37 मंत्रियों के नाम मोदी की दूसरी कैबिनेट से इस बार नदारद हैं. इसके साथ ही ये चर्चाएं भी तेज हो गईं हैं कि नड्डा के लिए पार्टी कुछ बड़ा सोच रही है. खबरें यह भी हैं कि एक समय बीजेपी के युवा मोर्चे के अध्यक्ष रहे नड्डा को अब पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जा सकता है. अभी तक ये जिम्मेदारी अमित शाह संभाल रहे थे. आमतौर पर लो प्रोफाइल रहने वाले नड्डा को बीजेपी का संकटमोचक भी कहा जाता है।

2019 आम चुनाव में यूपी की जीत में अहम योगदान
लोकसभा चुनाव 2019 के लिए यूपी में पार्टी के प्रदर्शन को और ऊंचाई पर ले जाने के लिए अमित शाह ने जेपी नड्डा को अहम जम्मेदारी सौंपी थी. नड्डा ने इसके लिए गुजरात में बीजेपी के मंत्री रहे गोर्धन जडाफिया के साथ मिलकर यूपी में एनडीए को 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट और 64 सीटें मिलना सुनिश्चित किया.

2014 की जीत के बाद भी अध्यक्ष पद की होड़ में थे नड्डा
हिमाचल प्रदेश से आने वाले जेपी नड्डा 2014 के लोकसभा चुनाव में मिली बीजेपी की जीत के बाद भी पार्टी अध्यक्ष पद की दौड़ में थे. तब पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह को कैबिनेट मंत्री बनाया गया था और अध्यक्ष पद की कुर्सी खाली होने वाली थी. मगर तब यूपी में शानदार प्रदर्शन करने वाले अमित शाह ने बाजी मार ली. तब उन्हें स्वास्‍थ्य मंत्री बनाया गया. तब से वे पार्टी के शीर्ष नेताओं में बने हुए है.

पटना से शुरू किया था राजनीतिक सफर
मौजूदा समय में बीजेपी के दिग्गज नेता जेपी नड्डा ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत बिहार में छात्र नेता के तौर पर की थी. हिमाचल प्रदेश के ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखने वाले और बिहार के पटना में जन्मे नड्डा के पिता एनएल नड्डा पटना यूनिवर्सिटी में वाइस चांसलर थे. नड्डा 1977 में पटना यूनिवर्सिटी में हुए छात्र संघ चुनाव में सचिव चुने गए. नड्डा ने जय प्रकाश नारायण के आंदोलन में भी हिस्सा लिया था. इसके बाद उच्च शिक्षा के लिए अपने गृहराज्य हिमाचल प्रदेश लौट आए. उन्होंने कानून की पढ़ाई शुरू की और एबीवीपी से जुड़े रहे.

रच दिया इतिहास
नड्डा के नेतृत्व में 1984 में एबीवीपी ने हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी में हुए चुनाव में पहली बार स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) को हराया और वह स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष चुने गए. इसके बाद वह 1986 से 1989 तक एबीवीपी के महासचिव रहे. उनकी नेतृत्व क्षमता को देखते हुए बीजेपी ने 1991 में उन्हें भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया. तब उनकी उम्र 31 साल थी.

और बन गए सियासत के धुरंधर
1993 में नड्डा पहली बार चुनावी रण में उतरे और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बिलासपुर से जीत दर्ज की. तब राज्य में बीजेपी विरोधी लहर थी. ऐसे में जबकि पार्टी के कई दिग्गज नेता चुनाव हार गए थे, नड्डा को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया गया. नड्डा ने 1998 में फिर बिलासपुर से जीत दर्ज की. उसके बाद उन्हें प्रेम कुमार धूमल की सरकार में स्वास्‍थ्य मंत्री बनाया गया. हालांकि 2003 में वह चुनाव हार गए, लेकिन 2007 में फिर जीत दर्ज की और वापस धूमल सरकार में मंत्री बने. हालांकि धूमल के साथ मतभेदों के चलते वे हिमाचल प्रदेश की कैबिनेट छोड़कर संगठन में काम करने लगे. नितिन गडकरी ने 2010 में उन्हें पार्टी का महासचिव नियुक्त किया. 2017 में सीएम चेहरे धूमल की हार के बाद नड्डा मुख्यमंत्री पद के लिए अकेले दावेदार बने. मगर तब बने सियासी समीकरणों के चलते राज्य को एक राजपूत चेहरे की दरकार थी. सिर्फ यही एक बात नड्डा के खिलाफ रही.

इन खूबियों से बीजेपी के लिए खास हैं नड्डा
नड्डा की प्रबंधन क्षमता कमाल की हैं. वह किसी भी हालात में हार नहीं मानते. नड्डा राज्य की सियासत में भी उतना ही दखल रखते हैं, जितना कि केंद्र की राजनीति में. उत्तर प्रदेश में वह चुनाव प्रभारी थे और वहां मिली सफलता ने उनके राजनीतिक कौशल पर मुहर लगाने का काम किया है.

चुनौतियां भी कम नहीं
सितंबर 2019 में तीन बड़े राज्यों महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड़ में विधानसभा चुनाव होने हैं. यहां तक कि जम्मू-कश्मीर में भी चुनाव की संभावना को नकारा नहीं जा सकता. ऐसे में अगर वे बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाते हैं तो उनके सामने अमित शाह के तय किए ऊंचे मानकों को नया आयाम देने की चुनौती भी होगी.

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