
यूनिक समय, नई दिल्ली। जैन धर्म के अनुयायियों के लिए महावीर जयंती एक अत्यंत पावन और महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। आज यह जन्मोत्सव श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जा रहा है, जो भगवान महावीर की 2623वीं जयंती है।
भगवान महावीर का जीवन और संदेश
महावीर जी का जन्म 599 ईसा पूर्व (कुछ मान्यताओं के अनुसार 615 ईसा पूर्व) में बिहार के कुंडलग्राम में राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के घर हुआ था। बाल्यावस्था में उनका नाम वर्धमान रखा गया था। वे एक राजघराने में जन्मे, लेकिन सांसारिक सुखों का त्याग कर 30 वर्ष की आयु में संन्यास ले लिया। 12 वर्षों की कठोर तपस्या के पश्चात उन्होंने केवल ज्ञान प्राप्त किया।
उनका संपूर्ण जीवन अहिंसा, सत्य, तप और त्याग का प्रतीक रहा। भगवान महावीर ने समाज को नैतिकता, संयम और शांति का मार्ग दिखाया, जिसे आज भी जैन धर्म के मूल सिद्धांतों में माना जाता है।
महावीर जयंती पर किए जाने वाले धार्मिक कार्य
इस दिन श्रद्धालु सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और महावीर जी की मूर्ति का अभिषेक करते हैं। साथ ही भगवान की मूर्ति को रथ पर सवार कर समुदाय में शोभायात्रा निकाली जाती है। इस दिन भक्त जैन मंदिरों में जाकर प्रवचन सुनते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं। इस दिन जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र और दवाइयां दान की जाती हैं। कई श्रद्धालु इस दिन उपवास रखते हैं और आत्मशुद्धि के मार्ग पर चलते हैं।
भगवान महावीर की प्रमुख शिक्षाएं
- अहिंसा: किसी भी प्राणी को मानसिक, शारीरिक या वाणी से कष्ट न देना।
- सत्य: सदैव सत्य बोलना और ईमानदारी का पालन करना।
- अपरिग्रह: भौतिक वस्तुओं और इच्छाओं से दूरी बनाना।
- ब्रह्मचर्य: इंद्रिय संयम और आत्मनियंत्रण।
- अस्तेय: चोरी न करना और केवल वही लेना जो हमें स्वेच्छा से दिया गया हो।
महावीर जयंती न केवल भगवान महावीर के जीवन को श्रद्धांजलि देने का अवसर है, बल्कि उनके आदर्शों को अपनाने का भी एक माध्यम है। उनका संदेश आज भी समस्त मानवता को शांति, करुणा और आत्मानुशासन का मार्ग दिखाता है।
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