नई दिल्ली: देश के लोकतान्त्रिक व्यवस्था के तहत चुनाव दर चुनाव मौसम बना ही रहता है। अब एक बार फिर राज्यसभा की रिक्त हो रही सीटों के लिए अप्रैल में चुनाव होने जा रहे है। 2014 के बाद भाजपा के लिए इस बार राज्यसभा की सीटों को बढ़ाने और बचाने की दोहरी चुनौती होगी क्योंकि पिछले दो तीन वर्षो में भाजपा को कई राज्यों में सत्ता गंवाने और दिल्ली जैसे राज्य में सत्ता हासिल न कर पाने का बड़ा नुकसान हुआ है जिसका असर इस राज्य सभा के चुनाव पर पडने की पूरी संभावना है।
पार्टी नए लोगोें को मौका देना चाहती है
भाजपा के 15 राज्य सभा सदस्यों का कार्यकाल खत्म हो रहा है। इन राज्यसभा सांसदों में कई बडे नेता भी शामिल हैं। इनमें पूर्व मंत्री विजय गोयल, प्रभात झा और सीपी ठाकुर आदि शामिल हैं। इनमें कुछ को तो दोबारा मौका मिल सकता है तो कुछ का पत्ता साफ हो सकता है। पार्टी नए लोगोें को मौका देना चाहती है। पार्टी ऐसे लोगों को मौका देगी जो संगठन में कई वर्षो से बखूबी काम कर रहे हैं।
जहां तक भाजपा को नुकसान का सवाल है तो 2014 के बाद वह छत्तीसगढ राजस्थान मध्यप्रदेश में सत्ता गंवाने के साथ ही विधायकों की संख्या का भी नुकसान उठा चुकी है। हांलाकि उसे हरियाणा, आसाम, महाराष्ट्र और हिमाचल में लाभ मिल सकता है। बिहार में उसकी स्थिति अभी साफ नहीं है क्योंकि वहां पर भाजपा की जनता दल यू के साथ साझा सरकार है। बिहार में भाजपा को सहयोगी दल का कितना सहयोग मिलेगा अभी इसका फैसला होना बाकी है। बिहार में पांच सीटे रिक्त हो रही हैं जिसमें भाजपा की दो व जद यू की तीन सीटे हैं।
अब देखना है कि अप्रैल में होने वाले राज्य सभा की इन रिक्त सीटों पर भाजपा अपने पुराने चेहरों पर ही दांव लगाती है अथवा कुछ नए लोगों को मौका देती है। साथ अभी इस बात का भी इंतजार करना होगा कि सीटोंके बंटवारे को लेकर बिहार में क्या स्थिति पैदा होती है।
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