बांड भरने की व्यवस्था में बदलाव की दो बड़ी वजहें हैं। पहला कारण यह है कि छात्र लाखों की फीस से राहत पाने के लिए तुरंत बांड भरते थे। मामूली फीस पर एमबीबीएस करने के बाद अधिकांश डाक्टर प्रदेश में सेवाएं देने की तय शर्त का उल्लंघन करते थे। बांड की शर्तों के उल्लंघन से संबंधित कई वाद न्यायालय में विचाराधीन हैं। इससे चिकित्सा शिक्षा विभाग को दोहरा नुकसान था। एक तो पढ़ाई के लिए कम फीस वसूली गई। दूसरा, छात्र प्रदेश में सेवाएं देने की जगह कोर्ट की शरण ले लेते थे। इससे दोगुना नुकसान विभाग झेल रहा था।
दूसरा कारण यह है कि प्रदेश में चिकित्सकों के सृजित पद के सापेक्ष रिक्त पदों पर ही भर्ती होती है। कैडर में लगभग 2600 पद हैं, जिसमें से 80 प्रतिशत भरे हैं। एक गणना के अनुसार विभाग को प्रति वर्ष सौ चिकित्सकों की जरूरत रहेगी। ऐसे में 350 छात्रों से बांड भरवाने से विभाग उलटा फंस जाएगा। अगर सभी चिकित्सक प्रदेश में सेवाएं देने को राजी हो जाते हैं, तो विभाग के पास उन्हें भर्ती के लिए पद ही नहीं होंगे। इसी आधार पर शासन ने तय किया है कि केवल सौ सीटों पर प्रवेश पाने वाले छात्रों को बांड भरने की सुविधा रहेगी।
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