वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारत और चीन में तनाव जारी है. दूसरी ओर, धोखे से भारतीय जवानों पर हमला करने के बाद चीन अब बातचीत से मसले का हल निकालने की अपील कर रहा है. चीन के एक अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन के एक सैन्य प्रवक्ता ने कहा कि भारतीय पक्ष को अपने सीमावर्ती सैनिकों को सख्ती से रोकना चाहिए और बातचीत और वार्ता के रास्ते पर लौटना चाहिए. ऐसे में सवाल उठता है कि भारत को आगे क्या करना चाहिए? इसे लेकर विशेषज्ञों की क्या राय है, आइए जानें.
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हिंसक झड़प के बाद भारत के सामने क्या विकल्प हैं इसके बारे में रक्षा विशेषज्ञ मे. ज (रिटायर्ड) पीके सहगल ने कहा कि भारत के सामने कई विकल्प हैं. चीन को सबसे पहले साफ तौर पर बताना होगा कि भारत किसी तरह से इस मामले में समझौतान नहीं करेगा. इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट का काम बिल्कुल बंद नहीं होगा, यह बात चीन को बताना चाहिए. मामला देश की संप्रभुता का है. उन्होंने हमारी ताकत को देख लिया है और इसका अनुभव कर लिया है. जो भारत ने अभी कार्रवाई की है, उससे वास्तव में चीन का काफी नुकसान हुआ है. चीन को साफ तौर पर बता देना चाहिए कि अंतरराष्ट्रीय माहौल में हम दुनिया के साथ मिलकर चीन का विरोध करेंगे. कोरोना को लेकर उसकी आलोचना करेंगे, संयुक्त राष्ट्र संघ में ताइवान को सपोर्ट करेंगे, जरूरत पड़ी तो ट्रेड कार्ड का भी उपयोग करेंगे. तिब्बत कार्ड भी खेला जाएगा जो चीन के लिए बहुत घातक और खतरनाक होगा.
चीनी सामान का बहिष्कार हो
पीके सहगल ने कहा, चीन साफ तौर पर समझ रहा है कि हिदुस्तान नाराज है और भारत में मांग हो रही है कि चीन के सामान का बहिष्कार हो और उसके खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई हो. चीन साफ तौर पर देख रहा है कि आज का हिंदुस्तान 1962 का नहीं है. सीमा पर इतनी बड़ी फौज लेकर आने का मतलब था कि चीन वहां रहने के लिए आया था. उसे वापस जाना नहीं था लेकिन जब हिंदुस्तान ने उसके बराबर की सैन्य शक्ति इकट्ठी कर दी, 10 हजार सैनिक लगा दिए, तोपें लगा दीं, बख्तरबंद गाड़ियां लगा दीं, फिर बोफोर्स लाए, चिनूक्स लगा दिए तब उसे लगा कि हम हर प्रकार के निर्णय ले सकते हैं. हमारा नेतृत्व निर्णय लेने में मजबूत है और आगे कोई समझौता नहीं होगा. हमारे पास अनेकों विकल्प हैं, इसलिए किस स्टेज पर कौन सा विक्लप इस्तेमाल करना है, यह सरकार को निर्णय लेना है.
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सहगल ने कहा कि चीन को साफ तौर पर पता है कि भारत के साथ अगर युद्ध होता है तो भारत से ज्यादा नुकसान उसे होगा. चीन इस समय पूरी दुनिया में कोरोना, हांगकांग और ताइवान को लेकर अलग-थलग है. उसकी सबसे महत्वाकांक्षी योजना ओबीओआर की पूरी दुनिया में आलोचना हो रही है. उसके कई प्रोजेक्ट्स कैंसिल हो रहे हैं.
चीन को ज्यादा नुकसान
चीन के साथ आगे क्या कूटनीतिक लड़ाई होनी चाहिए? इस बारे में पूर्व राजनयिक अशोक सज्जनहार ने कहा कि अब हमें बैठकर चीन को सिर्फ बेनकाब (एक्सपोज) करने से काम नहीं चलेगा. अगर अपने यहां 20 जवान शहीद हुए हैं तो उनके यहां 40 से ज्यादा जवानों का नुकसान पहुंचा है. वहां से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, इसका मतलब है कि अगर उनके कम जवान मारे गए होते तो वे दुनिया के सामने आ जाते और कहते कि भारत के 20 जवान मारे गए हैं जबकि उनकी तुलना में हमें कम नुकसान हुआ है. अभी तक अगर चीन ने कोई संख्या नहीं बताई है तो इसका मतलब है कि उन्हें नुकसान काफी ज्यादा हुआ है.
बलपूर्वक भी निपटना होगा
सज्जनहार ने कहा कि हमें सिर्फ कूटनीतिक तरीके से नहीं बल्कि बलपूर्वक भी उनसे निपटना होगा. चीन की तरफ से जो विश्वासघात हुआ है उसे देखते हुए हमें हर इलाके में सचेत और मुस्तैद रहना चाहिए. कुछ भी होता है तो हमें उसका पूरी तैयारी के साथ जवाब देना होगा. तनाव वाले इलाकों में हम चीन के मुकाबले ज्यादा अच्छी स्थिति में हैं. अरुणाचल, सिक्किम या उत्तराखंड में हम ज्यादा अच्छी स्थिति में हैं. दूसरी बात व्यापार है, जिसमें हम चीन को बखूबी मुंहतोड़ जवाब दे सकते हैं. हमारा उसके साथ 60 बिलियन डॉलर का ट्रेड सरप्लस है. अमेरिका के साथ उसका 400 बिलियन डॉलर का सरप्लस है और दूसरे नंबर पर भारत आता है. चीन में आर्थिक स्थिति की वजह से खलबली मची हुई है. 80 मिलियन लोगों के पास रोजगार नहीं है. इसके कारण चीन के लोगों में सरकार के खिलाफ रोष है.
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अब पोस्ट 15 जून की बात हो
चीन हमारा बड़ा पड़ोसी है. दोनों देशों के बीच 3888 किमी का बॉर्डर है. लड़ाई न तो चीन के लिए ठीक है और भारत के लिए लेकिन दोनो देशों के बीच ठीकठाक रिश्ते जरूर होने चाहिए. हम ये भी नहीं कह रहे कि दोनों देशों में बहुत ज्यादा हार्दिक संबंध हो लेकिन ठीकठाक जरूर हो. प्रधानमंत्री 5 बार चीन गए हैं, उसके बाद भी चीन ने भारत के साथ धोखा किया. इसके जवाब में सज्जनहार ने कहा कि भारत आज की तारीख में कई संगठनों और संस्थाओं का सदस्य है. पहले या तो ऐसी संस्थाएं नहीं थीं या भारत उसका सदस्य नहीं था. द्विपक्षीय यात्रा की बात करें तो सिर्फ एक बार मई 2015 में हुई है, बाकी वे (पीएम मोदी) रीजनल मीटिंग्स के लिए चीन गए हैं. चीन ने हमारे साथ पहले भी विश्वासघात किए हैं लेकिन भारत को जहां-जहां लगा कि उसके साथ सहयोग हो सकता है, तो इस दिशा में काम किए गए. लेकिन अब हालात बदले हैं और पहले की तरह संबंध अब बिल्कुल नहीं रह सकते. अब तक हम प्री और पोस्ट कोविड की बात करते रहे हैं लेकिन अब हमें प्री और पोस्ट 15 जून की बात करनी चाहिए.
एलएसी पर ध्यान लगाए सेना
अगले कदम के बारे में रक्षा विशेषज्ञ कर्नल (रिटायर्ड) रोहित देव ने कहा कि एलएससी पर भारतीय सेना जो कार्रवाई कर रही है, अभी उसे इसी पर ध्यान लगाना चाहिए. मेरे पास जो सूचना है उसके मुताबिक अपनी तरफ जितना नुकसान हुआ है उससे कहीं ज्यादा बिना हथियार के हमारी सेना ने उन्हें नुकसान पहुंचाया है. चीन इस पूरे इलाके में सुनियोजित तरीक से लगा हुआ है. पूरे लामडांग इलाके में कमान बनाई है. 2018 से लेकर जुलाई 2019 तक उसने काफी आला दर्जे की सेना और हथियार इस इलाके में तैनात किए. उसकी रेल लाइन इस इलाके तक आती है जिसे सपोर्ट करने के लिए 5 एयरपोर्ट हैं.
अभी तक यही था कि वह हमसे ज्यादा जल्दी इस इलाके में फोर्स ला सकता था लेकिन पिछले तीन साल में तिब्बत में बड़ी संख्या में फोर्स तैनता किए हैं. धीरे-धीरे यह बढ़ोतरी एलएसी तक होगी. गलवान में यही देखा जा रहा है. परसों रात की घटना में भी यह हुआ कि इनके दल गाड़ियों में सामान भरकर गलवान घाटी तक आए. यह टेक्टिकल लेवल पर विश्वासघात है क्योंकि 6 जून को बातचीत हुई उसके बाद ऐसी घटना हो गई.
रोहित देव ने कहा कि मैं भरोसा दिलाना चाहता हूं कि भारत की सेना और उसके कमांडर कोई हिस्सा व्यर्थ नहीं जाने देंगे. अभी जो कमान वहां लगी है, उसे लगाए रखना चाहिए. साथ ही सैटेलाइट पिक्चर से यह पता लगाना चाहिए कि उनकी एक्चुअल डिप्लॉयमेंट कितनी है. इसी आधार पर आगे की कार्रवाई करनी चाहिए. ट्रूप्स के लिए सैटेलाइट इनफॉरमेशन और ड्रोन का इस्तेमाल जरूरी है. उस इलाके में कुछ सड़कें बंद की गई हैं क्योंकि वहां से सेना की मोबालाइजेशन होगी. चिनूक्स जैसे हेलिकॉप्ट से भी साजो-सामान पहुंचाने की जरूरत है. आईटीबीपी को भी लगाया गया है यह अच्छी बात है. एयरफोर्स का भी री-लोकेशन हो सकता है. वहां बुलेटप्रूफ आइटम्स भी पुहंचाए जाने चाहिए.
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