क्यों मध्य प्रदेश में कमलनाथ सॉफ्ट हिंदुत्व की बड़ी लकीर खींच रहे हैं?

कमलनाथ
कमलनाथ

मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ इन दिनों सूबे में हिंदुत्व के इर्द-गिर्द अपनी सियासी बिसात बिछाने में जुटे हैं. सरकार में रहते हुए और अब सत्ता से बेदखल होने के बाद भी कमलनाथ प्रदेश में सॉफ्ट हिंदुत्व की ऐसी बड़ी लकीर खींचने में लगे हैं, जिसके जरिए बीजेपी के हार्ड हिंदुत्व का मुकाबला कर सकें. यह सियासी तौर पर उन्हें मुफीद लग रही है, जिसमें नुकसान नहीं बल्कि राजनीतिक तौर पर फायदा ही फायदा नजर आ रहा है. ऐसे में कमलनाथ हनुमान से लेकर भगवान कृष्ण और श्रीराम के नाम पर खुलकर खेल रहे हैं.

प्रधानमंत्री ने धोनी को लिखी भावुक कर देने वाली चिट्ठी, बतायी न्यू इंडिया की पहचान

अयोध्या में बन रहे राम मंदिर का क्रेडिट वार शुरू हो गया है. मध्य प्रदेश कांग्रेस के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 76वीं जयंती पर मध्य प्रदेश कांग्रेस ने विज्ञापन जारी कर दावा किया है कि राजीव गांधी ने राम राज्य की परिकल्पना की थी. इतना ही नहीं अयोध्या में राम मंदिर की नींव भी राजीव गांधी ने ही रखी थी और राम जन्मभूमि के ताले भी उन्होंने खुलवाए थे. विज्ञापन में कहा गया है कि राजीव गांधी राम राज्य की गतिशील यात्रा के कुशल सारथी रहे हैं.

राजीव गांधी ने 1985 में दूरदर्शन पर रामायण सीरियल शुरू कराया. उसके बाद उन्होंने राम जन्मभूमि के ताले खुलवाकर भक्तों को रामलला के दर्शन करवाए. इतना ही नहीं उन्होंने ही 1989 में राम जन्मभूमि के शिलान्यास की इजाजत भी दिलवाई थी. कमलनाथ ने कहा था कि अगर कोई और राम मंदिर का क्रेडिट लेने की कोशिश कर रहा है तो ये गलत है. इतना ही नहीं 5 अगस्त को अयोध्या में राम मंदिर का भूमि पूजन के दिन कमलनाथ ने अपने निवास पर राम दरबार का आयोजन किया था और एमपी कांग्रेस दफ्तर में दीये जलाए गए थे.

दरअसल, कमलनाथ शुरू से ही मध्य प्रदेश में सॉप्ट हिंदुत्व की राह पर चलते रहे हैं. कांग्रेस का अध्यक्ष बनने और सत्ता में आने के बाद उन्होंने अपने नेताओं को स्पष्ट निर्देश दिया था कि कोई भी ऐसा बयान नहीं दें, जिससे वोटों का ध्रुवीकरण हो. इसके साथ ही उन्होंने सत्ता में रहते हुए हिंदू धार्मिक स्थलों को लेकर भी कई महत्वपूर्ण फैसले लिए थे. जिनमें श्रीलंका में सीता मंदिर के निर्माण के लिए फंड की व्यवस्था करने से लेकर ओरछा में रामराजा के मंदिर को संवारने की प्रक्रिया तक शामिल है.

सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर कांग्रेस

मध्य प्रदेश में 27 विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव होने हैं. कमलनाथ के ‘सॉफ्ट हिन्दुत्व’ को इसी से जोड़कर देखा जा रहा है. मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार योगेश जोशी कहते हैं मध्य प्रदेश में कांग्रेस को सॉफ्ट हिंदुत्व कार्ड खेलने से किसी तरह का कोई राजनीतिक नुकसान नहीं होने वाला है, क्योंकि मुस्लिम मतदाताओं के सामने कोई दूसरा सियासी विकल्प नहीं है. 2018 के चुनाव में कमलनाथ इसी फॉर्मूले पर बीजेपी को मात देने में सफल रहे हैं. यही वजह है कि वो अब उपचुनाव में भी उस रणनीति को अपनाना चाहते हैं.

सांसद संजय सिंह ने सरकार को दी चुनौती, हिम्मत हो तो गिरफ्तार करे, जानिए

मध्य प्रदेश में बीजेपी ने अपने पंद्रह साल के शासन में कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक में काफी हद तक सेंध लगा ली थी. पिछले चुनाव में कमलनाथ के सॉफ्ट हिंदुत्व के चलते सांप्रदायिक आधार पर वोटों का धुर्वीकरण नहीं हो पाया था. इंदौर और भोपाल जैसे सांप्रदायिक रूप से संवदेनशील शहरों में भी उम्मीद से ज्यादा सफलता कांग्रेस को मिली थी. सिंहस्थ जैसे धार्मिक आयोजनों का भव्य स्वरूप भी बीजेपी की मदद नहीं कर पाए थे. दलितों को बीजेपी के पक्ष में लाने के लिए आयोजित किए गए समरसता स्नान का भी असर शिवराज के पक्ष में दिखाई नहीं दिया था.

विधानसभा चुनाव 2018 की पूरी रणनीति कमलनाथ ने खुद तैयार की थी. उनकी रणनीति में अल्पसंख्यक तुष्टिकरण को जगह नहीं मिल पाई थी, जबकि राम वन गमन पथ और गाय जैसे संवदेनशील मुद्दों को भी कांग्रेस ने अपने वचन पत्र में जगह दी. सरकार बनी तो मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इन वचनों पर तेजी से अमल भी शुरू किया है. राम वन गमन पथ के निर्माण के लिए 22 करोड़ रुपए भी स्वीकृत किए थे. पंचायत स्तर पर गोशाला निर्माण का काम हुआ था. कमलनाथ ने छिंदवाड़ा में प्रदेश का सबसे बड़ा हनुमान मंदिर बनवाने का काम किया.

मुस्लिम के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं

मध्‍य प्रदेश में करीब 8 फीसदी मुसलमान हैं. राज्य में करीब दो दर्जन विधानसभा सीटें मुस्लिम बहुल मानी जाती हैं. इसके अलावा एक दर्जन सीट पर मुस्लिम वोट निर्णायक भूमिका में है. 1967 में गैर कांग्रेसवाद की राजनीति शुरु हुई और मुसलमानों को भी विपक्ष में कांग्रेस का विकल्प दिखाई दिया तो उसने अपना रुख बदलना शुरू कर दिया, लेकिन मध्य प्रदेश में मुस्लिम समुदाय कांग्रेस का साथ नहीं छोड़ सका. इसकी एक बड़ी वजह ये है कि एमपी के मुस्लिम के पास यूपी और बिहार जैसे दूसरे राजनीतिक विकल्प नहीं है. इसके अलावा सपा और बसपा की राजनीतिक हैसियत भी ऐसी नहीं है कि वो सत्ता में आ सके और बीजेपी उन्हें तवज्जो नहीं देती है.

इंदौर में पेश से वकालत कर रहे शादाब सलीम कहते हैं कि मध्य प्रदेश में मुस्लिमों के सामने कांग्रेस के अलावा कोई और विकल्प नहीं है. इसीलिए मुस्लिम न चाहते हुए भी कांग्रेस को वोट देने के लिए मजबूर हैं. हालांकि, अब कांग्रेस और बीजेपी में बहुत ज्यादा फर्क नहीं है. इस बात को कमलनाथ और कांग्रेस नेता बाखूबी से समझते हैं और राजनीतिक तौर पर इसका फायदा भी उठाते हैं.

बता दें कि 2018 के चुनाव में कांग्रेस को भले ही स्पष्ट बहुमत नहीं मिल पाया हो, लेकिन कांग्रेस 114 सीटें जीतने में कामयाब रही थी और बीजेपी को 108 सीटें मिली थी. हालांकि, मार्च 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने समर्थक विधायकों के साथ कांग्रेस से बगावत कर बीजेपी का दामन थामा तो कमलनाथ की 15 महीने पुरानी सरकार गिर गई और शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में बीजेपी सत्ता में एक बार फिर से विराजमान है. अब 27 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव है, ऐसे में कांग्रेस हिंदू कार्ड खेलना चाहती है.

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*