एकाकार युगल सरकार
वृन्दावन : किशोरी और कान्हा के विशुद्ध प्रेम को कला की हर विधा ने अभिव्यक्त किया है। किसी ने शब्दों में ढाला है तो किसी ने राग-रागिनियों में उतारा है। कहीं वो तस्वीर में जीवंत होता है तो कहीं नृत्य में पर बाटी वाली कुंज की इस मूरत के आगे हर अभिव्यंजना छोटी प्रतीत होती है। भाव के सांचे से अष्टधातु की इस दुर्लभ मूर्ति को गढ़ने वाले ने राधा कृष्ण का अद्भुत रूप साक्षात कर दिया है। दोनो एकाकार हैं, एक दूसरे में गुंथे हुए। नेह में आबद्ध कमल नयन सम्मोहित कर लेते हैं। इनमें निश्चल प्रेम और समर्पण का वो सागर है जिसमें उतरने के बाद वापस लौटना आसान नहीं है। जितना देखो, देखने की चाह उतनी ही बढ़ती जाती है।
एक प्राण दो देह की प्रतीक राधा कृष्ण की यह मूर्ति बाटी वाली कुंज, वृंदावन दरवाजे में विराजमान है। यह करीब पांच सौ वर्ष पुराना विग्रह है। इसमें श्यामा श्याम रास मुद्रा में हैं। मंदिर में लक्ष्मण और उर्मिला के प्राचीन विग्रह भी हैं। यहां रामानंदी संप्रदाय के अनुसार पूजा होती है। मंदिर पर बाटी गांव (बहुलावन) के महंत का अधिकार है।
बाटी वाली कुंज और राधा-कृष्ण के इस युगल स्वरूप का प्राचीन इतिहास है। गंगाराम आचार्य दक्षिण भारत के तोताद्री मठ से मथुरा पधारे थे। उनके साथ राधा कृष्ण व वेंकटेश जी (लक्ष्मण व उनकी पत्नी उर्मिला) के श्रीविग्रह थे। उनके प्रपौत्र राम किशन दास महाराज ने बाटी गांव में विशाल गढ़ी का निर्माण कराया जो वर्तमान में जीर्ण-शीर्ण हो चुकी है। राम किशनदास ने भरतपुर दरवाजे के पास ते बाटी वाली कुंज बनवाकर युगल सरकार की दुर्लभ मूर्ति को यहां पधराया। जर्जर हो चुकी कुंज में विद्यालय चलता है।
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