आज गोपाल रास रस खेलत। पुलिस कल्पतरू तीर री सजनी।। सरद विमल नभ चंद विराजत। रोचक त्रिविध समीर री सजनी।।
“सड़क के नाम पर दूर-दूर तक बिछी मिट्टी। टेड़ी- मेड़ी डगर पर सवलने से टैक्सी ड्राइवर ने भी हाथ जोड़ दिए। एक बारगी हमें भी लगा जिसका रास्ता ही नहीं, वो मंजिल कैसी होगी पर फिर भी बदल चल पड़े। काफी दूर चलने के बाद आंखों के सामने वो था, जसके दरस को ब्रज चौरासी कोस में डोल रहे हैं। सघन वृक्षावली से आच्छादित इस स्थान का नाम है रासोली जहां शारदीय रास का रस बरसता है। रास बिहारी के वेणुनाद में जैसे आज भी ठहरी सी हैं यहां लता-पताएं। कान्हा का कदंब यहां इठलाता है तो पीलू मुस्काता है। द्वापर के इस दिव्य स्थान में आकर हृदय भाव विभोर हो जाता है। दधिगांव से दो किमी दूर रासोली तक पहुंचने के लिए पक्का रास्ता तक नहीं है। मध्य में रास बिहारी जी का प्राचीन मंदिर भी है। वन में टीलों के खंडहर हैं जो कभी यहां बस्ती होने के संकेत देते हैं। रासकुंड और डोल भी रासोली की शोभा बढ़ा रहे हैं। बीस एकड़ में फैले वन में कदंब, पीलू, तमाल आदि के वृक्ष हैं। रासोली सेवा संस्थान के अध्यक्ष धर्मवीर सिंह और उनके साथियों ने इस वन को बचाकर रखा है। संस्थान द्वारा समय-समय पर वृक्षारोपण कराया जाता है। रासोली में कोई पेड़ नहीं काटता। वन में सेवा करते फूल सिंह की मानें तो कार्तिक अमावस्या के एक दो दिन बाद रास कुंड में दूध की धार निकलती है। यहां कुछ संत भी रहते हैं। समय-समय पर धार्मिक अनुष्ठान होते रहते हैं। यह बहुत ही दिव्य स्थान
लीला
कन्हैया के कौतुकों से समूचा ब्रज परिचित था पर यशोदा मैया के लिए तो वह नन्हां सा बालक ही था। जब बजांगनाओं ने यशोदा मैया को कान्हा के रास के बारे में बताया, उन्हें विश्वास नहीं हुआ। तब मैया ने लाला से रासलीला प्रत्यक्ष देखने की बात कही। तब रास बिहारी ने इसी स्थान पर वेणुनाद कर महारास किया। कन्हा के वंश वादन को सुन जड़ चेतन सब सुध बुध खोने लगे। फिर भला यशोदा मैया कैसे न डूबतीं। चरण पहाड़ी और कोटवन के मध्य यह रासोली अर्थात रासमंडल है जहां रासेश्वर भगवान ने शारदीय महारास किया था यद्यपि ये प्रसिद्धि अधिक है कि वृंदावन के वंशीवट में ही वेणुनाद हुआ है लेकिन यह भी उतना ही सत्य है। जीव गोस्वामी के अनुसार इसी स्थल से वेणुनाद द्वारा रास का प्रारंभ हुआ है। प्राचीन ब्रज में कालिंदी नंदिनी यही बहती थी। यह कालिंदी नंदिनी यहीं बहती थी। यह कालिंदी के कूल का वन प्रांत था लेकिन युग प्रभाव से वर्तमान में यमुना यहं से दूर चली गई।
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