विशेष संवाददाता
मथुरा। गाजरघास आम जनमानस, खेत खलिहान एवं पशुधन के लिए बेहद घातक है। इसका नियंत्रण अब बहुत जरुरी हो गया है। अन्यथा इसके दूरगामी परिणाम बेहद खतरनाक होंगे। इसका प्रकोप पिछले कुछ सालों से चहुंओर इस कदर बढ़ गया है कि शायद ही ऐसी कोई जगह छूटी हो जहां इसका प्रकोप ना हो। ये विचार कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रभारी डा. वाईके शर्मा ने व्यक्त किए। वे गाजरघास के जागरुकता अभियान को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि गाजरघास जहां भी दिखाई दे उसके उन्नमूलन का हर संभव प्रयास सबको मिलकर जरुर करने चाहिए। क्योंकि इसके कुप्रभाव से इंसान, जानवर, खेत खलिहान कोई भी अछूता नहीं रह रहा।
उप कृषि निदेशक राम कुमार माथुर ने कहा कि गाजरघास के उन्मूलन के लिए जागरुकता अभियान चलाकर लोगों को इसके नुकसान की जानकारी देकर इसको समाप्त करने का प्रयास किया जा रहा है। कोई व्यक्ति अपने आसपास गाजरघास को नहीं पनपने दे, इस पर सफेद रंग के फूल आते हैं इसका पौधा देखने में गाजर की तरह होता है, इसकी लंबाई दो तीन फीट तक होती है। इसके संपर्क में आने मात्र से बीमारियों को बढ़ावा मिलता है। इसलिए इसको फूल आने से पूर्व ही जड़ से उखाड़कर जला देना चाहिए, या गड्ढे में दबा देना चाहिए। डा. ब्रजमोहन ने कहा कि गाजरघास का बीज किसी भी तरह नहीं बनने देना चाहिए। मानव सभ्यता के लिए बहुत खतरनाक है। डा. रविन्द्र कुमार राजूपत ने कहा कि गाजरघास गांव, कस्बों में बहुत तेजी से बढ़ रही है जिसका आगामी परिणाम बेहद खतरनाक होगा, इसलिए इसका नियत्रंण सबको मिलकर जरुर करना चाहिए। इसके स्पर्श मात्र से इंसान के शरीर में खुजली, एलर्जी, दमा आदि की शिकायतें होने लगती हैं। इसके गाजरघास का समूल नष्ट होनी चाहिए। फसलों को बेहद नुकसान पहुंचा रही है। कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रक्षेत्र एवं उप कृषि निदेशक कार्यालय के आसपास खड़ी गाजरघास कटवाकर नष्ट भी कराया गया।
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