नरेंद्र दाभोलकर हत्याकांड में 11 साल बाद आया अहम फैसला, दो उम्रकैद, मुख्य आरोपी बरी महाराष्ट्र के मशहूर नरेंद्र दाभोलकर मर्डर केस में 11 साल बाद अहम फैसला आया है। पुणे CBI की विशेष अदालत ने केस के 2 आरोपियों को दोषी करार देकर उम्रकैद की सजा सुनाई है, लेकिन बड़ी बात यह है कि केस का मास्टरमाइंड मुख्य आरोपी डॉ. विनोद तावड़े बरी हो गया है। उसके अलावा विक्रम भावे और संजीव पुनालकेर को भी सबूतों के अभाव में रिहा किया है।
जिन्हें उम्रकैद की सजा हुई है, उनमें शरद कालस्कर और सचिन अंडूरे शामिल हैं। इन दोनों पर 5-5 लाख रुपये जुर्माना भी लगाया गया है। नरेंद्र दाभोलकर महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के संस्थापक थे। 20 अगस्त 2013 की सुबह पुणे में सैर करते समय गोली मारकर इनका मर्डर कर दिया गया था। केस की प्राथमिक जांच पुणे पुलिस ने की थी, लेकिन बाद में केस CBI को सौंप दिया गया था। जांच एजेंसी ने पड़ताल करके 2016 में चार्जशीट दाखिल की थी। 8 साल की सुनवाई, गवाहियों, दलीलों के बाद आज फैसला सुनाया गया।
CBI की विशेष अदालत के जज AA जाधव ने फैसला सुनाया है। साल 2014 में केस CBI के हाथ में आया था। 11 साल में कुल 22 गवाहों के बयान दर्ज किए गए। 100 से ज्यादा CCTV फुटेज खंगाली। पुणे-ठाणे की जेल में बंद कैदियों से पूछताछ की। जून 2016 में हिंदू दक्षिणपंथी संगठन सनातन संस्था के मेंबर डॉ. वीरेंद्र तावड़े को CBI ने गिरफ्तार किया था। वारदात में इस्तेमाल पिस्तौल और काले रंग की बाइक भी बरामद हुई थी।
चार्जशीट में पहले विनोद तावड़े और सारंग अकोलकर को गोली चलाने वाला बताया गया। फिर सचिन अंडूरे और शरद कालस्कर को गिरफ्तार करके सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल की गई, जिसमें दोनों को शूटर बताया गया। वकील संजीव पुनालेकर और विक्रम भावे को सहयोगियों के रूप में पकड़ा गया। विनोद तावड़े, सचिन अंडूरे और शरद कालस्कर जेल में थे। संजीव पुनालेकर और विक्रम भावे को जमानत मिली हुई थी।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, नरेंद्र दाभोलकर की हत्या का कारण उनका अधंविश्वास के खिलाफ शुरू किया गया अभियान बना। सनातन संस्थान इस अभियान की विरोधी थी। संस्था को दाभोलकर की समिति द्वारा किए जाने वाले समाज सुधार कार्यों पर भी आपत्ति थी। अकसर दोनों के बीच टकराव होता था।
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