झारखंड में एक महीने पूर्व सत्ता में आई हेमंत सोरेन सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार के साथ ही विरोध के स्वर भी उठने लगे हैं। अभी भले ही पार्टी के विधायकों द्वारा सार्वजनिक रूप से बयान नहीं दिए गए हैं, मगर उनके समर्थक खुलकर मंत्रिमंडल विस्तार के लिए भेदभाव करने का आरोप लगा रहे हैं। झारखंड मंत्रिमंडल को लेकर लोगों को सबसे अधिक आश्चर्य झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के वरिष्ठ नेता स्टीफन मरांडी, पूर्व मंत्री और लातेहार से विधायक बैद्यनाथ राम और कांग्रेस की महगामा से विधायक दीपिका पांडेय को मंत्री नहीं बनाने से हुआ है।
धनबाद के एक झामुमो नेता ने नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर कहा कि संथाल परगना क्षेत्र से जहां मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के अलावा तीन विधायकों को मंत्री और एक को विधानसभा अध्यक्ष बना दिया गया, वहीं कोयलांचल क्षेत्र से किसी भी विधायक को मंत्रिमंडल में स्थान नहीं दिया गया है। उन्होंने कहा कि धनबाद, बोकारो और गिरीडीह क्षेत्र से झामुमो और कांग्रेस से कई विधायक बने हैं, मगर उन्हें मंत्रिमंडल में स्थान नहीं दिया गया। इसी तरह पलामू प्रमंडल से सिर्फ एक विधायक को मंत्री बनाया गया, जबकि पलामू प्रमंडल के लातेहार से विधायक बैद्यनाथ राम को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया। बैद्यनाथ इससे पहले कई महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं और स्नातक भी हैं।
मंत्रिमंडल में शामिल मंत्रियों की शैक्षणिक योग्यता पर गौर किया जाए तो मुख्यमंत्री सहित 11 मंत्रियों में से आठ मंत्री 10वीं से 12वीं पास हैं, वहीं दो स्नातक और एक भारतीस पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी रह चुके हैं। इधर, कांग्रेस में भी महिला विधायक को मंत्री नहीं बनाए जाने पर नाराजगी है। कांग्रेस की एक महिला कार्यकर्ता कहती हैं कि ऐसे तो कांग्रेस महिला आरक्षण की बात करती है, मगर जब उन्हें बड़ी जिम्मेदारी देने की बात आती है तो पार्टी पलट जाती है। ताजा उदाहरण झारखंड मंत्रिमंडल विस्तार में भी देखा जा सकता है। हेमंत सोरेन सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार के बाद कांग्रेस से कुल चार मंत्री बनाए गए हैं, लेकिन इनमें से कोई भी महिला नहीं है।
गौरतलब है कि झारखंड चुनाव में कांग्रेस के 16 विधायक जीतकर आए हैं, जिसमें चार महिलाएं भी हैं।सूत्रों का कहना है कि मंत्रिमंडल में शामिल होने वाले कई विधायकों का नाम मंत्रियों की सूची से अंतिम समय में काटा गया और नए नामों को जोड़ा गया। सूत्रों का दावा है कि कई नामों को पार्टी के अध्यक्ष शिबू सोरेन और उनके पुत्र व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन में सहमति नहीं होने के कारण काटा गया। शिबू सोरेन के नजदीकी रहे स्टीफन मरांडी को मंत्री नहीं बनाए जाने पर भी विरोध के स्वर उभरने लगे हैं। इधर, अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा और युवा राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना ने मंत्रिमंडल में किसी क्षत्रिय समाज के विधायक को शामिल नहीं किए जाने पर नाराजगी जाहिर की है। रांची में गुरुवार को झारखंड क्षत्रिय संगठन प्रतिनिधि महासभा के प्रदेश प्रवक्ता ललन सिंह ने कहा कि विधानसभा चुनाव में क्षत्रिय संगठन प्रतिनिधि महासभा झारखंड के आह्वान पर प्रतिनिधि महासभा के सभी घटक दल शामिल हुए।
मंत्रिमंडल विस्तार के बाद से ही मंत्री पद को लेकर राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस व झामुमो गठबंधन की इस सरकार में विरोध के स्वर उभरना शुभ संकेत नहीं है। हालांकि अभी भी एक मंत्री का पद रिक्त है। झारखंड में मुख्यमंत्री सहित 12 विधायकों को मंत्री बनाया जा सकता है। वैसे अब देखना होगा कि मंत्रिमंडल को लेकर विरोधी स्वर और मुखर होते हैं या हेमंत सोरेन इसे शांत करने में कामयाब रहते हैं।
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