भोपाल। मध्य प्रदेश में वर्ष 2019 के दौरान भाजपा ने लोकसभा चुनाव में पहली बार सर्वाधिक 28 सीटें जीतकर रिकार्ड कायम किया। किसानों के मुद्दे और विधायक प्रहलाद लोधी की सदस्यता पर पार्टी संघर्ष करते हुए भी दिखी। लोधी की सदस्यता जाते-जाते बची, लेकिन दो भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी और शरद कोल की डांवाडोल निष्ठा ने पार्टी की नींद उड़ा दी। मंडल और जिलों में संगठन चुनाव तो हुए, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष का फैसला नए साल के खाते में चला गया। गुजरते साल के उत्तरार्ध में नागरिकता संशोधन कानून पर विपक्ष के आक्रामक प्रचार की रणनीति सामने भाजपा पहली बार असंमजस की मुद्रा में भी नजर आई। प्रोपेगंडा पॉलीटिक्स का जवाब देने वह देर से सक्रिय हुई और घर-घर दस्तक देने की तैयारी करती रही। यह सभी जानते हैं कि वर्ष 2018 का उत्तरार्ध भाजपा के लिए सर्वाधिक कष्टदायी रहा, जब डेढ़ दशक बाद उसके हाथ से प्रदेश की सत्ता छिन गई, लेकिन छह माह बाद ही लोकसभा चुनाव के नतीजों ने उसे निहाल कर दिया।
सरकार गिराने के सुर हुए शांत
लोकसभा चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया और पहली बार 29 में से 28 सीटों पर उसने जीत का झंडा लहरा दिया। विधानसभा चुनाव के बाद शुरुआती छह-आठ महीने तक कमलनाथ सरकार को भाजपा लगातार गिराने की धमकी भी देती रही। नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सक्रियता और बोल-वचन मीडिया की सुर्खियां भी बने, लेकिन हौले-हौले मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सरकार पर अपनी मजबूत पकड़ साबित कर दी। साल के अंत तक शुद्ध के लिए युद्ध, माफिया पर कार्रवाई और हनीट्रैप खुलासे के बाद सरकार गिराने के सुर भी लगभग शांत ही हो गए।
सुप्रीम कोर्ट तक गई लड़ाई
निचली कोर्ट से सजा मिलते ही विधानसभा अध्यक्ष ने पवई से भाजपा विधायक प्रहलाद लोधी की सदस्यता ही खत्म कर दी। इस घटनाक्रम से भौंचक भाजपा आंदोलित हुई सड़क से लेकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी। अंतत: सर्वोच्च अदालत से राहत मिलने के बाद लोधी की सदस्यता जाते-जाते बहाल हो गई।
खाली खजाने पर रही आक्रामक
सरकार के खाली खजाने और किसानों के मुद्दे पर भाजपा आक्रामक बनी रही, लेकिन नागरिकता संशोधन कानून को लेकर देश भर में बवाल मचा। कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों ने दिल्ली तक प्रदर्शन कर दिया, उसके बाद भाजपा हाईकमान जनजागरण के लिए सक्रिय हो पाया। साल के अंतिम दिनों में भाजपा इस मुद्दे पर घर-घर दस्तक देने की तैयारी में ही लगी रही। इस अभियान पर अब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और हाईकमान दोनों की निगाहें लगी हुई हैं।
नेतृत्व को लेकर चलता रहा संघर्ष
पार्टी के फ्रंट लाइन का संघर्ष साल भर नजर आया। प्रदेश अध्यक्ष कौन होगा, इसे लेकर राष्ट्रीय नेतृत्व को भले कोई भ्रम न हो, लेकिन सूबे में कई सारे नाम तैरते रहे।
Leave a Reply