ब्रज भ्रमण: यह है वो मंदिर जहां श्रीकृष्ण गुड़गुड़ाते है हुक्का

“घने कोहरे में दुबकी है भोर की बेला। सोचा क्यों न तराश के जमाई ठाकुर से मिल आएं । ठिठुरते हुए इस ठाम पर पहुंच ही गए। बाहर से धर्मशाला प्रतीत होते मंदिर में प्रवेश किया। धुंध ने सब कुछ ढांप रखा है। बगीचे से अंदर आते ही रंगीले ठाकुर से नैन लड़े। कजरारे मोटे-मोटे बोलते नयन, अधरों पर लाली,  हाथों में वंशी लिए चित्चोर खड़ा है। यह श्यामल मूरत हंसती है, बोलती है, यही नहीं हुक्का भी गुड़गुड़ाती है। दाईं ओर राधा विनोदिनी विराजमान हैं जिनका हाथ ठाकुर ने स्वयं मांग लिया था ।  जमाई ठाकुर के ठाठ ही निराले हैं। इस अलबेले प्राणवान विग्रह से मिलने आप भी आ जाओ।

वृंदावन-मथुरा मार्ग पर रामकृष्ण मिशन अस्पताल से आगे दाईं ओर की गली राधा विनोद मंदिर ले जाती है जो जमाई ठाकुर के नाम से प्रसिद्ध है। गौड़ीय संप्रदाय से जुड़े मंदिर का निर्माण राजर्षि वनमाली राय ने कराया था। सन् 1904 में मंदिर बनकर पूर्ण हुआ। गर्भगृह में ललिता सखी, ठाकुर जी, राजकन्या राधा विनोदिनी और विशाखा सखी के दर्शन हैं। मुख्य सिंहासन के नीचे राधा गोवर्धनधारी और उसके नीचे निताई गौर के विग्रह हैं। गर्भगृह में दो हुक्के भी रखे हैं। राजभोग और शयन के बाद जमाई ठाकुर के लिए हुक्का भरा जाता है।

मंदिर के सेवायत त्रिलोचनदास के अनुसार “राधाकुंड, गोवर्धन में भी तराश स्टेट का मंदिर है जिसे राजवाड़ी कहा जाता है। ठाकुर जी वनमाली राय के जमाई है। उनकी सेवा जमाई भाव से होती है। ज्येष्ठ शुक्ल षष्ठी को जमाई षष्ठी के रूप में मनाते हैं। उसी दिन जमाई ठाकुर का राधा विनोदिनी से ब्याह हुआ था।”

 

ऐसे बने जमाई ठाकुर

तराश स्टेट में नवग्राम के अधिकारी परम भक्त वांछाराम प्रतिदिन कारतीया नदी में स्नान करने जाते थे। एक दिन स्नान करते हुए उन्हें मधुर आवाज सुनाई दी,  मुझे जल से निकालकर घर ले चलो। हतप्रभ वांछाराम ने चारों ओर देखा कि इतने में उनके पांव से एक वस्तु टकराई । हाथ डालकर देखा तो विनोद ठाकुर मिले। वांछाराम ने विग्रह को गले से लगाया और घर ले आए। नव विनोदी विनोद जी रोज स्वप्नादेश देकर नई पोशाक, नए आभूषण, इतर, फुलेल आदि मांगते। ब्रज में किसी वृद्ध गोप को उन्होंने हुक्का पीते देखा। उस शौक को पूरा करने के लिए विनोद जी ने एक धनी को स्वप्न दिया। वह चांदी से मढ़ा निगालीदार सुदर फारसी हुक्का, चिलम और सुगंधित तंबाकू लेकर वांछाराम के पास पहुंचा । वांछाराम चौके तो धनी ने स्वप्न की बात बताई। तब से ठाकुर जी के सामने हुक्का रखने की परंपरा शुरू हो गई। राजभोग के बाद वांछाराम जी चिलम भरकर ठाकुर के सामने हुक्का भरकर रख देते। किसी -किसी दिन उन्हें हुक्के की गुड़गुड़ाहट भी सुनाई देती थी । दूर दराज के भक्त इस रंगीले ठाकुर के दर्शन को आते । किसी व्यक्ति के कहने पर वनमाली राय अपनी पत्नी और 11 वर्षीय राजकुमारी राधा को साथ लेकर वांछाराम के पास पहुंचे । विनोद ठाकुर के दर्शन कर राधा मुग्ध हो गई और अपनी मां से बोली,  ठाकुर मुझे देखकर हस रहा है। मां ने यकीन नहीं किया । वनमाली राय कन्या के साथ प्रतिदिन दर्शन को आने लगे। एक दिन राधा बोली, पिताजी राधा विनोद को घर ले चलो। विनोद ठाकुर गाजे-बाजे संग वनमाली राय के यहां आ गए। ठाकुर ने राधा से कहा, तू मुझसे विवाह कर ले।

देखते-देखते राधा की तबियत बिगड़ने लगी। विनोद ठाकुर ने राधा की मां को स्वप्न दिया कि, तेरी बेटी नहीं बचेगी। मैं उसे अंगीकार करूंगा । बगीचे में जो सूखा नीम का पेड़ है, उसकी लकड़ी से कन्या की प्रतिमा बनवाकर मेरे संग उसका विवाह कर दो। प्रतिमा तैयार होते ही राधा प्राकृत देह से पार हो गई । दाह संस्कार के बाद प्रतिमा से विनोद ठाकुर का ब्याह हुआ। तभी से वह राधा विनोद कहलाएं और जमाई ठाकुर के नाम से विख्यात हुए। वनमाली राय ने सन् 1867 में श्री अद्वैतप्रभु वंशज राधिकानाथ गोस्वामी से वैष्णवी दीक्षा ग्रहण की। उन्होंने वृंदावन में इस मंदिर का निर्माण कराया और राधाकुंड में राजबाड़़ी नाम से विशाल भवन भी बनवाया।

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