चंद्रयान-2: विक्रम लैंडर उस अंधेरे में कहीं खो जाएगा, करोड़ों दिलों के सपनों पर भी छा जाएगा अंधेरा!

नई दिल्ली। चांद के दक्षिणी ध्रुव पर अंधेरा बढ़ने लगा है. ये वही जगह है जहां पर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की ओर से भेजे गए चंद्रयान 2 का लैंडर विक्रम घायल पड़ा है। चांद पर छाने वाले अंधेरे के साथ ही भारतीय वैज्ञानिकों और करोड़ों दिलों के सपनों पर भी अंधेरा छा जाएगा. अभी से सिर्फ तीन घंटे के बाद विक्रम लैंडर उस अंधेरे में कहीं खो जाएगा, जहां से उससे संपर्क करना तो दूर उसकी तस्वीर भी नहीं ली जा सकेगी।

चांद पर छाने वाला अंधेरा इतना घना होता है कि वहां पर कोई भी चीज देखना नामुमकिन हो जाता है। ऐसे में इसरो ही नहीं दुनिया की कोई भी स्पेस एजेंसी विक्रम लैंडर की तस्वीर नहीं ले सकेगी। चांद पर ये अंधेरा अगले 14 दिनों तक बना रहेगा. ऐसे में अगले 14 दिनों तक लैंडर विक्रम को बिना किसी सहारे के अकेले चांद पर रहना होगा. ऐसे में उसके सलामत रहने की उम्मीद न के बराबर हो जाएगी।

चांद के दक्षिणी ध्रुव में जिस जगह पर लैंडर विक्रम पड़ा है वहां पर अगले 14 दिनों तक सूरज की रोशनी नहीं पहुंचेगी. ऐसे में चांद का तापमान घटकर माइनस 183 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाएगा. इस तापमान में लैंडर विक्रम को अपने आप को संभालना बेहद मुश्किल होगा. इतने कम तापमान में लैंडर विक्रम के कई इलेक्ट्रॉनिक हिस्से खराब हो जाएंगे. ऐसे में अगर विक्रम लैंडर में रेडियोआइसोटोप हीटर यूनिट लगा होता तो ही वह खुद को बचा सकता था. चांद की सतह पर जिस तरह के हालात बनते जा रहे हैं उससे दुबारा लैंडर विक्रम से संपर्क साधने की सारी उम्मीदें खत्म होती दिख रही है.

गौरतलब है कि 7 सितंबर को आधी रात को 1:50 बजे के करीब विक्रम लैंडर का चांद के साउथ पोल पर पहुंचने से पहले संपर्क टूट गया था. जब ये घटना हुई तब चांद पर सूरज की रोशनी पड़नी शुरू हुई थी. यहां आपको बता दें कि चांद पर एक दिन यानी सूरज की रोशनी वाला पूरा वक्त पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर होता है. ऐसे में 7 तारीख के बाद से 14 दिन बाद यानी 20-21 सितंबर को चांद पर काली रात हो जाएगी.

22 जुलाई को चंद्रयान-2 को लॉन्च किया गया था
इसरो ने 22 जुलाई को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस स्टेशन से चंद्रयान-2 को सफलतापूर्वक लॉन्च किया था. चंद्रयान-2 के तीन हिस्से थे. ऑर्बिटर, लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान. रोवर लैंडर के अंदर ही है, जबकि ऑर्बिटर चांद के चारों तरफ चक्कर लगा रहा है. ये एक साल तक चांद की तस्वीरें भेजता रहेगा.

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