कोरोना: दूसरी लहर के खिलाफ प्रभावी रहा ‘मुंबई मॉडल’, बीएमसी अधिकारी से समझिए पूरी रणनीति

मुंबई। देश की आर्थिक राजधानी कही जाने वाली मुंबई में हालात अब नियंत्रित नजर आ रहे हैं। अप्रैल में शहर में जहां हर रोज 11 हजार से ज्यादा नए संक्रमित मिल रहे थे। वहीं, बीते मंगलवार को यह आंकड़ा 2554 मरीजों पर आ गया। देश अभी भी दूसरी लहर की मार झेल रहा है। कई राज्यों में स्थिति बेहद खराब है, लेकिन इस बीच मुंबई में प्रशासन की तैयारियों ने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा है. बीएमसी के अतिरिक्त कमिश्नर सुरेश ककानी ने बताया कि आखिर मुंबई दूसरी लहर के इस संकट से कैसे उबर पाया।

पहला हथियार साबित हआ टेस्टिंग और ट्रैकिंग
उन्होंने बताया कि शॉपिंग मॉल, सब्जी मंडी, मछली बाजार जैसी ज्यादा भीड़ वाली जगहों पर स्वाब कलेक्शन के लिए कियोस्क स्थापित किए गए थे। साथ ही बाजार में सामान खरीदने वाले लोगों की रैपिड एंटीजन जांच की गई। इससे नतीजे 15-30 मिनट में सामने आते थे और जरूरत पड़ने पर व्यक्ति को आइसोलेट किया जाता था। उन्होंने बताया कि दुकानदारों और खाद्य व्यापारियों के मामले में RT-PCR जांच का इस्तेमाल किया। इसके अलावा बीते साल अक्टूबर और फरवरी के बीच तैयार हुई अतिरिक्त क्वारंटीन सुविधाओं ने भी इस समय काफी मदद की।

ऑक्सीजन और बिस्तरों के लिए पहले से तैयार
उन्होंने जानकारी दी है कि इस दौरान ऑक्सीजन सप्लाई सिस्टम को बढ़ाया गया था। उन्होंने बताया कि 28 हजार मौजूद बिस्तरों में से करीब 12-13 हजार बेड पर ऑक्सीजन सप्लाई की व्यवस्था थी। उन्होंने कहा कि दूसरी लहर में बढ़ी मांग के साथ हम तैयार थे और मरीजों को आसानी से भर्ती कर पाए। इसके अलावा ऑक्सीजन सिलेंडर में भी बदलाव किए गए थे।

उन्होंने बताया कि शुरुआत में आम सिलेंडर पर निर्भर थे, लेकिन बाद में जंबो सिलेंडर का इस्तेमाल किया। इनकी क्षमता आम सिलेंडर से 10 गुना ज्यादा होती है। साथ ही 13 हजार किलो लीटर वाली लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन टैंक तैयार किया। प्रबंधन की वजह से अस्पताल रीफिल मोड से हटकर स्टोरेज-सप्लाई मोड पर आ गए थे।

पुराने रुटीन को नहीं छोड़ा
उन्होंने बताया कि पहली लहर के दौरान जो रुटीन सिस्टम फॉलो किया जाता था, हमने उसे इस बार भी जारी रखा। घर-घर जाकर सर्वे, कैंप लगाना, इनफ्लुएंजा जैसे या कोविड लक्षणों की पहचान के लिए निजी तौर पर प्रैक्टिस करने वालों को साथ रखा। ये सभी बातें प्रशासन के पक्ष में रहीं। इस दौरान वॉर रूम भी तैयार किए गए, जो एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र तक सीमित था। ये वॉर रूम लोगों के संपर्क में रहते थे, उन्हें आइसोलेट करते थे, टेस्टिंग सुविधा, मरीजों को शिफ्ट करने जैसे काम करते थे।

उन्होंने जानकारी दी है कि हमने लैब के लिए यह अनिवार्य कर दिया था कि मरीज के पास रिपोर्ट जाने से पहले हमारे साथ सूची साझा की जाए। इसके बाद जरूरतमंद मरीजों तक वॉर रूम की टीमें मौके पर पहुंचकर मदद करती थीं।

दवा की कमी का क्या?
अधिकारी ने कहा कि हमने पहले ही रेमडेसिविर जैसी दवा की कमी का अनुमान लगा लिया था और 2 लाख वायल के लिए टेंडर जारी कर दिया था। इसके चलते किसी पब्लिक हॉस्पिटल में रेमडेसिविर की कमी नहीं हुई. सभी बड़े अस्पतालों में 80 फीसदी बिस्तर कोविड मरीजों के लिए आरक्षित थे।

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