यूनिक समय, मथुरा। हमारे पूर्वज वैज्ञानिक थे। सोने के लिए खाट हमारे पूर्वजों की सर्वोत्तम खोज है।हमारे पूर्वजों को क्या लकड़ी को चीरना नहीं आता था ? वे भी लकड़ी चीरकर उसकी पट्टियाँ बनाकर डबल बेड बना सकते थे। डबल बेड बनाना कोई रॉकेट सायंस नहीं है। लकड़ी की पट्टियों में कीलें ही ठोंकनी होती हैं।चारपाई भी भले कोई सायंस नहीं है ।
लेकिन एक समझदारी है कि कैसे शरीर को अधिक आराम मिल सके। चारपाई बनाना एक कला है। उसे रस्सी से बुनना पड़ता है और उसमें दिमाग और श्रम लगता है।
जब हम सोते हैं,तब सिर और पांव के मुकाबले पेट को अधिक खून की जरूरत होती है।क्योंकि रात हो या दोपहर में लोगअक्सर खाने के बाद ही सोते हैं। पेट को पाचनक्रिया के लिए अधिक खून की जरूरत होती है। इसलिए सोते समय चारपाई की जोली ही इस स्वास्थ का लाभ पहुंचा सकती है।
दुनिया में जितनी भी आराम कुर्सियां देख लें, सभी में चारपाई की तरह झोली बनाई जाती है। बच्चों का पुराना पालना सिर्फ कपडे की झोली का था, लकडी का सपाट बनाकर उसे भी बिगाड़ दिया गया है। चारपाई पर सोने से कमर और पीठ का दर्द कभी नही होता है। दर्द होने पर चारपाई पर सोने की सलाह दी जाती है।
डबल बेड के नीचे अंधेरा होता है,उसमें रोग के कीटाणु पनपते हैं,वजन में भारी होता है तो रोज-रोज सफाई नहीं हो सकती। चारपाई को रोज सुबह खड़ा कर दिया जाता है और सफाई भी हो जाती है, सूरज का प्रकाश बहुत बढ़िया कीटनाशक है। खटिये को धूप में रखने से खटमल इत्यादि भी नहीं लगते हैं। अगर किसी को डॉक्टर आराम का लिख देता है। भारतीय चारपाई ऐसे मरीजों के बहुत काम की होती है ।
गर्मियों में ड़बल बेड गर्म हो जाता है इसलिए वातानुकूलित की अधिक जरुरत पड़ती है, जबकि सनातन चारपाई पर नीचे से हवा लगने के कारण गर्मी बहुत कम लगती है ।
बान की चारपाई पर सोने से सारी रात अपने आप सारे शरीर का एक्यूपंक्चर होता रहता है । गर्मी में छत पर चारपाई डालकर सोने का आनद ही और है।ताज़ी हवा,बदलता मोसम, तारों की छाव,चन्द्रमा की शीतलता जीवन में उमंग भर देती है । हर घर में एक स्वदेशी बाण की बुनी हुई चारपाई होनी चाहिए स्वदेशी चारपाई के बदले हजारों रुपये की दवा और डॉक्टर का खर्च बचाया जा सकता है।अगर डाब या कांस की बुनी हुए तो सर्वोत्तम होती है।
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