सेहत: कैसे बनता है कत्था और क्यों है फायदेमंद

नई दिल्ली। यदि पान के शौकीन हैं, तो कत्थे के महत्व को अच्छी तरह से समझते होंगे। बगैर कत्थे के पान बेस्वाद होता है। कत्था सिर्फ पान की लाल रंगत ही नहीं बढ़ाता है, बल्कि इसको खाने से शरीर को कई फायदे भी होते हैं। आइए जानते हैं कत्था कैसे बनता है और इसके लाभ क्या हैं-

ऐसे बनाया जाता है कत्था
कत्था खैर के पेड़ से निकलता है, लेकिन इसे बनाने का तरीका थोड़ा अलग है। कत्था बनाने के लिए खैर के पेड़ का तना काटकर उसकी लकड़ी को पतले चिप्स की तरह काटा जाता है। फिर इन कटी हुई लकड़ियों को उबलने के लिए एक तार के पिंजरे में रखा जाता है, जिसमें 8-9 किलोग्राम लकड़ी रखकर पानी में करीब तीन घंटे तक उबाला जाता है। इस पानी से जो अर्क निकलता है, उसे मलमल के कपड़े से फिल्टर किया जाता है। फिर इसे खुले बरतन में डालकर छाया वाले स्थान पर तब तक के लिए रखा जाता है, जब तक कत्था का क्रिस्टलाइजेशन ना हो जाए।

कत्था खाने के ये हैं फायदे
कत्था में एंटी फंगल गुण होते हैं, यानी यह फंगल संक्रमण को रोकने में मदद करता है। साथ ही यह त्वचा के कई प्रकार की एलर्जी या पिगमेंटेशन के इलाज में कारगर है।

कत्था खाने से दांत की समस्याएं भी ठीक हो जाती हैं, इसे पायरिया जैसी बीमारी दूर होती है। पान के साथ कत्थे का उपयोग करने से मसूड़ों को मजबूती मिलती है। कत्‍थे को सरसों के तेल में घोल कर रोजाना 3 बार मसूड़ों पर मलें. इससे खून आना तथा बदबू आने की समस्या दूर हो जाएगी।

कत्था पाचन तंत्र को ठीक करने में भी सहायक होता है और इससे खून भी साफ होता है। 300 से 700 मिली ग्राम कत्‍था का सुबह शाम सेवन करने से खट्टी डकार बंद हो जाती है।

कत्थे को शहद के साथ मिक्स करके खाने से दस्त का इलाज भी किया जा सकता है. इससे बवासीर जैसी समस्याएं ठीक हो जाती हैं। इस्तेमाल के लिए सफेद कत्‍था, बड़ी सुपारी और नीलाथोथा बराबर मात्रा में लें। पहले सुपारी व नीलाथोथा को आग पर भून लें और फिर इसमें कत्‍थे को मिलाकर पीस कर इसका चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को मक्‍खन में मिला कर पेस्‍ट बनाएं। इस पेस्‍ट को रोज सुबह-शाम शौच के बाद 8 से 10 दिन तक मस्‍सों पर लगाने से मस्‍से सूख जाते हैं।

कत्था दो प्रकार का होता है एक सफेद और एक लाल, लेकिन औषधीय प्रयोग में सफेद कत्थे का ही प्रयोग किया जाता है, लाल कत्था का नहीं।

पान पर शहद और कत्था लगाकर खाने से सर्दी जुकाम में आराम मिलता है। करीबन 300 मिलीग्राम कत्‍थे का चूर्ण मुंह में रख कर चूसने से गले की समस्याओं जैसे गला बैठना, आवाज रुकना, गले की खराश और छाले आदि से राहत मिल सकती है। इसका दिन में 5 से 6 बार सेवन करना चाहिए. इसके अलावा कत्‍था सुबह-शाम चाटने से भी लाभ मिलता है. इससे सूखी खांसी भी दूर हो जाती है।

डायबिटीज के मरीजों को भी कत्था खाना चाहिए, इससे उनकी शुगर नियंत्रित होती है.
कत्था भूख बढ़ाने में भी सहायक औषधि है। इसके अतिरिक्त जिन्हें पेशाब नहीं आने की समस्या होती है उनके लिए भी यह एक कारगर औषधि है।

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