मुंबई। जम्मू-कश्मीर को स्पेशल स्टेटस देने वाले संविधान के आर्टिकल 370 हटाने के बाद तनाव का माहौल है. इसके बाद सरकार ने राज्य में तमाम तरह के बैन लगा रखे हैं. सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को हटाने को लेकर दायर याचिकाओं पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. कोर्ट ने इन प्रतिबंधों को हटाने से इनकार कर दिया है. शीर्ष अदालत का कहना है कि मामला संवेदनशील है. सरकार को कुछ और वक्त मिलना चाहिए. मामले की अगली सुनवाई अब दो हफ्ते बाद होगी.
Attorney General replied,'we are reviewing the day-to-day situation. It’s a highly sensitive situation, it’s in the interest of everyone. Not a single drop of blood has been shed, no one died. SC says,'we post the matter for hearing after two weeks and we will see what happens.' https://t.co/Q2JdjBB0NK
— ANI (@ANI) August 13, 2019
बता दें कि जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन बिल पास होने के बाद से सरकार ने ऐहतिहातन पूरे जम्मू और श्रीनगर में सेक्शन 144 लगा रखी है. कश्मीर घाटी में भी सुरक्षा बढ़ा दी गई है. सरकार ने कई इलाकों में मोबाइल फोन कनेक्शन और इंटरनेट पर रोक लगा रखी है.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से पूछा कि घाटी में ऐसा कब तक चलेगा. इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि जैसी ही स्थिति सामान्य होगी सारी पाबंदियां खत्म हो जाएगी. हम कोशिश कर रहे हैं कि लोगों को कम से कम असुविधा हो. 1999 से हिंसा के कारण अब तक घाटी में 44000 लोग मारे गए हैं.
याचिका में मांग
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को लेकर कई याचिकाएं दर्ज थी.. इनमें से एक याचिका कांग्रेस नेता तहसीन पूनावाला ने दायर की थी. उन्होंने घाटी से कर्फ़्यू हटाने के साथ फ़ोन, इंटरनेट, न्यूज़ चैनल पर लगी सभी पाबंदियों को हटाने की मांग की थी. पूनावाला ने जम्मू-कश्मीर के हालात की वस्तुस्थिति का पता लगाने के लिए एक न्यायिक आयोग के गठन का अनुरोध भी किया था. कश्मीर टाइम्स की संपादिका अनुराधा भसीन ने भी मीडिया की आजादी को बहाल करने और नज़रबंद नेताओं की रिहाई के लिए दायर की थी. नेशनल कॉन्फ्रेस के दो सांसद अकबर लोन और हसनैन मसूदी के अलावा एक वकील ने भी याचिका दायर करके अनुच्छेद 370 के संशोधनों और नए राज्य के गठन को चुनौती दी थी.
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