दिल्ली में विधानसभा चुनावों के लिए तारीख की घोषणा चुनाव आयोग ने कर दी है और इसी के बाद से पार्टियों ने जीतने के लिए अलग अलग वादे करना भी शुरू कर दिया है और इस कोशिश में लगी हैं कि कैसे भी कर के दिल्ली में सरकार बनाई जाए।
2014 में जब मोदी लहर थी तो सभी विपक्षी दल इस मोदी लहर को कम करने के लिए एक हो गए थे ताकि बीजेपी को हराया जा सके। विपक्षी दलों की एकता का नजारा लोकसभा चुनाव से पहले कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में हुई रैली में भी देखने को मिला। वहां बीजेपी के खिलाफ सभी दाल एक तरफ थे लेकिन अब ऐसा लगता है कि विपक्षी दलों में दरार पड़ गई है।
दरअसल पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने 13 जनवरी को विपक्षी पार्टियों की बैठक में जाने से इनकार कर दिया है और इसका अर्थ साफ है कि इस बार ममता अन्य विपक्षी दलों के साथ एकजुट होने जैसा कोई मानस नहीं रखती है। ममता ने ये तक कहा कि कांग्रेस और अन्य दल बंगाल में गंदी राजनीति कर रहे हैं।
अब ममता अपनी राह पर अकेले चल पड़ी है और नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के खिलाफ होने वाली है। बनर्जी ने कहा था कि वो केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों, सीएए और प्रस्तावित एनआरसी के विरोध में बुलाए गए बंद के मकसद का समर्थन करती हैं लेकिन उनकी पार्टी और सरकार किसी भी प्रकार के बंद के विरोध में हैं।
लेकिन दूसरी ओर उन्होंने कहा, हम बंगाल में किसी भी प्रकार की हड़ताल का समर्थन नहीं करेंगे। हड़ताल जैसी सस्ती राजनीति कर राज्य की अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने की कोशिश कर रहे हैं।
गौरतलब है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले ममता बनर्जी इस बयान से अन्य विपक्ष पार्टियों पर निशाना साध कर उनपर सवाल उठा रही है और इससे ये बात भी साफ़ होती है कि शायद ममता बनर्जी अन्य विपक्षी दलों के साथ गठबंधन भी ना करें। अब देखना यह है कि महागठबंधन पर पड़ती इस दरार को कांग्रेस कैसे पाटती है।
बता दें कि दिल्ली में विधानसभा चुनाव 2020 के लिए चुनाव की तारीखों का ऐलान आखिरकार हो गया है। चुनाव आयुक्त ने मतदान के लिए 8 फरवरी को चुना है। वोटों की गिनती 11 फरवरी को होगी और नतीजों का ऐलान भी इसी दिन हो जाएगा। अब देखना बाकी है कि राजनीति आगे जाकर किस तरह का मोड़ लेती है और कौनसी पार्टियां एक दूसरे के साथ गठबंधन करती है।
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