ब्रज भ्रमण: मीरा सी दीवानी करमैती बाई, तेरे नाम पे लुट गए लाखों

करमेंती की कुटी बाग गोपीनाथहिं के मांहीं
करमेंती सेखावत नृप के प्रोहित की सुता भगति रस सानि

सो सेखावत के नृप की इह कुटी परम सुखदाई
ताकि तिहि थल ही समाधि इ ब्रह्म्कुंड पर हमाई

वेदना के भार से हृदय भर गया है। करमैती के निशां ढूंढ़ते-ढूंढ़ते बावरी हो गई हूं। पुरातत्व विभाग बेखबर है और ब्रज का संरक्षणकरने वाले बेपरवाह। किस-किस से नहीं पूछा । ब्रज परिक्रमा का साहित्य कहता है, ब्रह्म्कुंड पर कृष्ण भक्त करमैती की छतरी जीर्ण-शीर्ण हाल में है पर उनमें भी कोई चित्र नहीं। वृंदावन शोध संस्थान कहता है छतरी अतिक्रमण में दब गई, अब दिखाई नहीं देती। कुछ लोग कहते हैं, कुंड के बाईं ओर जिसमें कंडे भरे पड़े हैं, वहीं करमैती की छतरी है। मैं थक गई हूं और समझ भी गई हूं कि करमैती बाई गुमनामी में खो गईं। उस भक्तिमती की समाधि के दर्शन कभी नहीं होंगे । कृष्ण की इस ‘मीरा’ से समाज अनभिज्ञ है। राजस्थान से सब कुछ त्याग कर वृंदावन आई करमैती की भक्ति गाथा मीरा जैसी है। जब पिता लिवाने आए तो बोलीं, “मैं श्याम की हो चुकी, संसार के लिए यह
शरीर मुर्दा है।” आप सही न उनकी कथा। खंडेला के राज पुरोहित परशुराम जी की पुत्री करमैती बाई ने श्याम संग नेह की डोर जोड ली थी। वृंदावन आकर वह ब्रह्मकुंड पर भजन करने लगीं। करमैती की भक्ति से प्रभावित होकर खंडेला के राजा उनके दर्शन करने आए और कुंड के पास वैरागिणी के लिए कुटी बनवा दी। गोपाल के प्रेम में डूबी करमैती के नेत्रों से अश्रु झरते रहते थे। 18 दिन तक उनके कुछ न खाने पर ठाकुर जी संत वेश में आए और उन्हें प्रसाद दिया । करमैती बाई ने कहा कि ‘आप ऐसा प्रसाद दीजिए जिससे जन्म जन्मांतर की भूख समाप्त हो जाए’ । भगवान ने कहा कि ‘यह प्रसाद ऐसा ही है।’ प्रभु की झांकी का दर्शन करती हुई करमैती बाई वृंदावन धाम को प्राप्त हुईं।
विद्वानों का कथन
राजस्थान के रघुनाथ प्रसाद तिवाड़ी की पुस्तक ‘पारीक जाति के इतिहास भाग 2’ में करमैती बाई पर लेख है जिसके अनुसार करमैती बाई का वह आश्रम व मीठे पानी का कुआं रंग जी मंदिर के दक्षिण दरवाजे के बाहर घेरे में है । कुंज कुटी का चबूतरा शेष रह गया है।
‘ब्रज मंडल परिक्रमा’ के लेखक अनुरागी बाबा ने बताया कि “कुंड की दक्षिण दिशा में करमैती की कुटी और उसी के पास मीठा कुआं था जिसमें 1993 के आसपास एक मारवाड़ी ब्राह्मण रहता था । जव निर्माण में पुराने चिन्ह खत्म हो गए हैं ” बाबा के बताए स्थान पर देखा। अब यह किसी की निजी संपत्ति है| इस घर में कुआं भी है जो पाट दिया गया है । स्वर्गीय भक्ति विजय ने भी अपनी पुस्तक ‘ब्रज भूमि मोहिनी’ में करमैती बाई की छतरी का जिक्र किया है। उनकी बहन सरला शर्मा ने बताया कि “छतरी अब लुप्त हो चुकी है। कुछ लोग दूसरी छतरी को करमैती की छतरी प्रचारित करते हैं ।वह उनका वास्तविक स्थान नहीं है”

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