पूर्व दिशा के इस कोने में है दरवाजा तो अच्छा रहता है बैंक बैलेंस

यूनिक समय, मथुुरा। घर का द्वार बनाने के लिए वास्तु शास्त्र में 32 पदों का वर्णन है। वाराहमिहिर के समरांगण सूत्रधार ग्रंथ के अनुसार 32 पदों में से हम आपको बताएंगे पूर्व दिशा के आठ पद और उनसे जीवन में पड़ने वाले असर के बारे में। प्रत्येक दिशा में आठ-आठ पद के हिसाब से कुल 32 पद होते हैं। वास्तु में इन 32 पदों का बेहद अहम योगदान है। ज्योतिषाचार्य पं. अजय कुमार तैलंग से जानिए पूर्व दिशा के आठ पद और उनका महत्व। पूर्व दिशा के पदों का आरंभ उत्तर पूर्व कोने से होता है।

ई-1: पूर्व दिशा का पहला पद शिखि कहलाता है। इस दिशा में अर्थात आठवें भाग में द्वार बनाना अशुभ होता है। इससे धन की हानि, दुर्घटना का भय और अज्ञात भय का डर हमेशा रहता है।
ई-2: पूर्व दिशा के आठवें पद में से दूसरा पद पर्जन्य कहलाता है। इस भाग में दरवाजा होने से घर में फिजूलखर्ची बहुत होती है।
धन में बरक्कत नहीं होती है। परिवार में कन्या की अधिकता होती है। आकस्मिक घटनाओं का भय रहता है ?।
ई-3: पूर्व दिशा के आठों पद में से तीसरे पद का नाम जयन्त है। यह स्थान द्वार के लिए बहुत उत्तम है। आर्थिक संपन्नता बढ़ती है। बैंक बैलेंस अच्छा रहता है और परिवार में खुशियां रहती हैं।
ई-4: पूर्व दिशा के चौथे भाग को इंद्र कहते हैं। यह दिशा द्वार बनाने के लिए बहुत ही अच्छी है। अगर किसी व्यक्ति के घर का द्वार इंद्र पद पर हो तो बहुत सफलताएं प्राप्त करता है। प्रतियोगिता परीक्षाएं, उच्च शिक्षा और धन की आवक उत्तम रहती है। परिवार में मंगल कार्य होते रहते हैं।
ई-5: पूर्व दिशा के पांचवें भाग का नाम सूर्य है। यद्यपि नाम बहुत सुंदर है किंतु उसके विपरीत यह पद द्वार के लिए अशुभ होता है। इसलिए इस पद पर अपना द्वार न बनाएं। परिवार में अक्सर अप्रिय सूचनाएं मिलती हैं एवं दुर्घटनाएं घटती रहती हैं। इस परिवार के लोग आपस में तालमेल से नहीं रहते हैं। पड़ोसियों से संबंध अच्छे नहीं रहते हैं।
ई-6: पूर्व दिशा के छठे भाग को सत्य कहते हैं। नाम के विपरीत इस दिशा में अनुकूलता नहीं रहती है। लोगों में अनिर्णय की स्थिति बनी रहती है। परस्पर क्रोध की भावना और अविश्वास जन्म लेता है। महिला सदस्यों का स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता।
ई-7: पूर्व दिशा के सातवें भाग का नाम भ्रंश है।
यह दिशा भी द्वार के लिए अधिक शुभ नहीं रहती है। लोग कठोर निर्णय करते हैं। इससे आपस में तालमेल की कमी रहती है। असंवेदनशीलता ऐसे घरों में अधिक देखी गई है। इसलिए इस पद पर द्वार बनाना अशुभ होता है।
ई-8: पूर्व दिशा के आठवें और अंतिम भाग का नाम आकाश है। इस भाग में भी द्वार बनाना अशुभ होता है क्योंकि यह पद दक्षिण दिशा के निकटवर्ती पद होता है। इसलिए ऐसे स्थान पर द्वार बनाने से घर में चोरी का भय रहता है। आग संबंधी दुर्घटनाएं अधिक होती है। परस्पर अविश्वास की भावना जन्म लेती है। परिवार की महिला सदस्य अपने को असहज महसूस करती हैं।

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