क्या है मकर संक्राति का महत्व और बदलती तारीख की वजह

14 jan 2023

आाज के दिन संक्रांति भारत ही नहीं पूरी दुनिया के लिए एक विशेष महत्व का दिन होता है। खुद भारत में ही इस मौके पर अलग अलग संस्कृतियों में इसे अलग नाम के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। मजेदार बात यह है कि वैसे तो सूर्य हर महीने ही एक राशि परिवर्तन करता है, लेकिन मकर संक्राति कई लिहाज से काफी अलग और महत्वपूर्ण हो जाती है इसलिए इस दिन का केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि इसका वैज्ञानिक, खगोलीय और जलवायु महत्व भी है. इस दिन का संबंध पृथ्वी के मौसम परिवर्तन काल, से भी है तो वहीं इसकी तरीख की भी अपनी अहमियत है जो अमूमन 14 या 15 जनवरी ही रहती है जिसका भी एक कारण है।

क्या है मकर संक्रांति?
पृथ्वी को ब्रह्माण्ड का केंद्र माना जाए तो आभारी रूप से एक साल में सूर्य पृथ्वी का एक पूरा चक्कर लगाता दिखाई देता है। जबकि वास्तविकता में ऐसा पृथ्वी की सूर्य की परिक्रमा कारण होता है क्योंकि पृथ्वी के चक्कर लगाने से सूर्य के पीछे की पृष्ठभूमि बदलती है और ऐसा लगता है की सूर्य अलग अलग तारामंडल से गुजरता दिखाई देता है। पूरे चक्कर को 12 भागों में बांटा गया है जिन्हें राशियां का जाता है और जिस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता दिखता है।

सूर्य की परिक्रमा करते समय पृथ्वी और सूर्य के पीछे की राशि के बदलाव के दौरान पृथ्वी के अक्ष का झुकाव एक सा रहता है, लेकिन उसके कारण एक गोलार्द्ध छह महीने सूर्य के सामने तो दूसरे छह महीने पीछे रहता है। इस वजह से पृथ्वी पर सूर्य की किरणों का कोण बदलता रहता है और सूर्य छह महीने उत्तर की ओर तो छह महीने दक्षिण की ओर जाने का आभास देता है। इसी को हिंदू धर्म में उत्तरायण और दक्षिणायण कहते हैं और मकर संक्रांति में सूर्य दक्षिणायण उतरायाण काल में जाना माना जाता है।

इसी वजह से मकर संक्रांति के बाद उत्तरी गोलार्ध में सूर्य उत्तर की ओर जाने लगता है और भारत सहित उत्तरी गोलार्द्ध में सर्दी कम होने लगती है और गर्मी बढ़ने लगती है। ऐसा 21 जून तक होता है जिसके बाद से क्रम उल्टा होने लगता है। लेकिन भारत में मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व ज्यादा है। जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में जाता दिखाई देता है। और यह तारीख14 या 15 जनवरी को पड़ती है। वैज्ञानिक तौर पर देखें को वास्तव में यह तारीख 21 दिसंबर को होनी चाहिए जब सूर्य वास्तव में उत्तर की ओर खिसकना शुरू होता है। लेकिन भारत और उत्तरी ध्रुव के मध्य अक्षांशीय देशों में यह प्रभाव मकर संक्रांति पर ज्यादा प्रभावी माना जाता है। इस अंतर की एक वजह है कि जहां तकनीकी तौर पर उत्तरायण 21 दिसंबर को शुरू होता है. वहीं हिंदू पंचांग में मकर संक्रांति से उत्तरायण को प्रभावी माना गया है.।

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