मोबाइल की बुरी लत के कारण बीमार हो रहे बच्चे

गाजियाबाद में एक से तीन साल तक के बच्चे आटिज्म के शिकार हो रहे हैं। गाजियबाद के संयुक्त जिला अस्पताल में एक नवंबर 2023 से 31 जनवरी 2024 तक 665 बच्चों का पंजीकरण किया गया। यह सभी मोबाइल की लत से परेशान थे।

डॉक्टर साहब… मेरा तीन साल का बेटा दिनभर मोबाइल फोन में कार्टून देखता है। खाना खाते समय भी मोबाइल नहीं छोड़ता। अगर उसके हाथ से मोबाइल छीन लो तो खाना नहीं खाता और चिल्लाने लगता है। कई बार तो सिर फर्श पर पटकने लगता है।

जिला एमएमजी अस्पताल के मनोचिकित्सा प्रकोष्ठ में यह केस आदर्शनगर से आया। बच्चे में मोबाइल की लत लग जाने का यह अकेला मामला नहीं है। रोज ऐसे लगभग 150 मामले आ रहे हैं। आदर्शनगर के केस के बारे में अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. विपिन चंद्र उपाध्याय ने बताया कि बच्चे को वर्चुअल ऑटिज्म की परेशानी हो गई है।

मोबाइल फोन, लैपटॉप या टीवी पर ज्यादा समय बिताने पर यह परेशानी आती है। इसके शिकार बच्चों को दूसरों से बातचीत करने में दिक्कत आने लगती है। वे बोलने में भी कतराने लगते हैं। इन बच्चों में आटिज्म नहीं होता, लेकिन उसके लक्षण आने लगते हैं।

एमएमजी के मनोचिकित्सा प्रकोष्ठ की क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. चंदा यादव का कहना है कि कई बार माता- को पिता भी व्यस्त होने के कारण या बच्चे को खाना खिलाने के लिए मोबाइल का लालच देते हैं। यही लालच उनमें लत बन जाता है। इससे बच्चे के विकास पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है और बच्चा जिद्दी हो जाता है।
ऐसे बच्चों में तनाव और इस एंग्जाइटी जैसे व्यवहार संबंधी समस्याएं विकसित होने का खतरा अधिक होता है, जो काफी चिंताजनक है। संयुक्त जिला अस्पताल में एक नवंबर 2023 से 31 जनवरी 2024 तक 665 बच्चों का पंजीकरण किया गया। यह सभी मोबाइल की लत से परेशान थे। इनमें से 515 की काउंसिलिंग कराई गई।

एमएमजी अस्पताल में काउंसिलिंग कराने आई बोंझा निवासी महिला ने बताया कि उनका छह वर्षीय बेटा मोबाइल पर गेम खेलता रहता है तो शांत रहता है। मोबाइल लेते ही रोने और चीखने लगता है। एक दिन उसके हाथ से उसके बड़े भाई ने मोबाइल ले लिया तो गुस्से में उसने उसके सिर पर गिलास फेंक कर मार दिया। स्कूल शिक्षिका ने डॉक्टर को दिखाने के लिए कहा तब अस्पताल में ले गई। चार बार की काउंसिलिंग के बाद अब आदत में सुधार है।
संयुक्त अस्पताल में साथिया केंद्र पर काउंसिलिंग कराने पहुंची गोविंदपुरम की महिला ने बताया कि उनका 11 वर्षीय बेटा एक निजी स्कूल में छठीं कक्षा में पढ़ता है। स्कूल से आते ही वह मोबाइल पर गेम खेलने लगता है। खाने-पीने के लिए कहने पर गेम रुकते ही चीजें फेंकने लगता है। काउंसिलिंग चल रही है। अब स्कूल से आने के बाद पार्क में खेलने जाता है।

एमएमजी अस्पताल में 12 वर्षीय बेटे का इलाज कराने पहुंचे विजय नगर निवासी व्यक्ति ने बताया कि उनका बेटा सुबह सिर में दर्द बताता है। डॉक्टर के पूछने पर पता चला कि देर रात तक मोबाइल पर रील्स देखता है। देर रात जागता रहता है। डॉक्टर ने बताया कि बच्चे को कम से कम मोबाइल फोन दिया जाए। रात में जल्दी सुलाएं, नींद पूरी होने पर बिना दवाई के ही सिर दर्द बंद हो जाएगा।

बाल रोग विशेषज्ञ एवं प्रतिरक्षण अधिकारी डॉ. नीरज अग्रवाल ने बताया कि एक से तीन साल के बच्चों में मोबाइल आटिज्म का ज्यादा खतरा होता है। बच्चे जैसे ही बैठना और चलना शुरू करते हैं, अगर फोन के संपर्क में आ जाते हैं तो परेशानी आ जाती है। सवा साल से लेकर तीन साल की उम्र तक के बच्चों में ऐसा बहुत ज्यादा देखने को मिल रहा है।

संयुक्त अस्पताल में संचालित साथिया केंद्र के संचालक और काउंसलर मुकेश यादव ने बताया कि यह परेशानी सर्दी में अधिक बढ़ती है। रजाई या कंबल के अंदर बच्चे मोबाइल लेकर पूरी रात रील्स या वीडियो देखते रहते हैं, जबकि मां-बाप को लगता है उनका बच्चा सो रहा है। यह परेशानी निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों में अधिक है।

इस तरह छुड़ाएं लत
घर के सदस्य एक साथ खाना खाएं
बच्चों के साथ समय दें, उन्हें किस्से- कहानियां सुनाएं।
सोने वाले कमरे से मोबाइल और टीवी दूर रखें।
बच्चा आनलाइन पढ़ाई करता है तो उन पर नजर रखें।
रात के समय बच्चों को मोवाइल का प्रयोग नहीं करने दें।

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